Friday, December 31, 2010

वर्ष का अंतिम दिन .........

रोज  ध्यान रखता हूँ
सहेज कर रखता हूँ कितना

फिर भी हर बार
छीन ले जाते हो तुम
किस तेजी से...

मेरे

चेहरे से रंगत
दोस्तों की संगत

आँखों  की लालिमा
बालों की कालिमा

दिन  की स्निग्धता
रातों की उनिग्धता

गर्दन का गुरूर
बातों का सुरूर

क़दमों की तीव्रता
धड़कन की आवृता

रिश्तों की पहचान
किराये का मकान

छुटपन के साथी
संस्कारों कि थाती

हर बार
ले ही तो लेते हो तुम
बिना समय गवाए
बिना  सूचित किये
न चेतावनी
न कोई राहत

बस आभास भर
और
गुजर जाते हो
दबे कदमों से

किस कदर
निष्ठुर
आताताई हो तुम

ओ नव वर्ष
फिर कैसे 
स्वागत  करू
भला तुम्हारा

5 comments:

  1. हरीश जी , गहरे जज्बात के साथ मार्मिक और सुंदर प्रस्तुति......नूतन वर्ष २०११ की आप को हार्दिक शुभकामनाये.

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  2. Bilkul sahi bayan kiya hai sir aapne. Purnrupen sahmat hun aapki is rachna se jab aankhon mein aansu ho aisa mahshus ho ki kuch chut gaya kuch aisa jo apna tha jab samne andhera dikhta ho to koi kaise swagat kar sakta hai is nisthur naye saal ka

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  3. man ko chu gayi aapki yah rachna. ise padhne ke baad jo bhaw man mein uth rahe hain main bayan nahi kar sakti.Par fir bhi yah to kah hi sakti hun har baar ki tarah is baar bhi ek purntaya marmsparshi aur khubsoorat rachna hai

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  4. घर आया मेहमान नया साल, अब कर ही लें आत्‍मीय स्‍वागत.

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