Saturday, March 12, 2011

कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर...


कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं ! ज्यूं गीत कोई प्यासे मन के,.. हर साँझ मुझे तरसाते हैं !! तुम काम सुता बासंती सी, यौवन की सहज अंगड़ाई तुम ! अतृप्त सलोने दिन ये मेरे, और अलसाई- अलसाई तुम !! रोके से रुका कब नेह प्रिये,, रोके न रुकी मन की सरगम ! मैं तप्त मरू के बीहड़ सा,, शीतल सुरभित अमराई तुम !! कितना भी धरूं मैं धीर मगर,,,उनिग्ध मुझे कर जाते हैं ! कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं !! तुम सप्त सुरों में झंकृत सी, भावों की प्रबलता हैं तुममे ! रचना में गुथा आलंबन हैं, व्यंजक सी चपलता हैं तुममे !! गीत कोई क्या लिखेगा,, तुमको न अगर वो जान सका ! वो चिराग मंदिर का अगर, उसकी उज्ज्वलता हैं तुममे !! क्यों नीर सदा इन नयनों के ,,जलप्रपात से झर जाते हैं ! कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं !! तुमसे ही मेरा ये जीवन हैं, इस जीवन का आधार तुम्ही ! तुम शब्द हो मेरी रचना के,, इन शब्दों का संसार तुम्ही !! जितना भी तुम्हे मैं कह पाऊ,, गीतों मैं तुम्हे पा लेता हूँ ! भावों का समर्पण तुमसे हैं, और रस छंदों की धार तुम्ही !! फिर भी विश्वास नहीं तुमको, ये नयन सदा झुक जाते हैं ! कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं !! ज्यूँ गीत कोई प्यासे मन के.... हर सांझ मुझे तरसाते हैं, !!!
......हरीश भट्ट....

9 comments:

  1. Bahut khoob likha hai harish ji. Ji karta hai padhti jaun bas padhti jaun baar baar aur ek chahat si uthi hai dil mein ki kash ise geet ke roop mein sun sakti. Dil khush kar diya aapki is rachna ne har baar ki tarah is baar bhi aur aage bhi isse bhi utkrisht rachna padhne ko milegi aasha hai. Hats off to you. Just keep writing like this

    ReplyDelete
  2. जितना भी तुम्हे मैं कह पाऊ, गीतों मैं तुम्हे पा लेता हूँ
    भावों का समर्पण तुमसे हैं और रस छंदों की धार तुम्ही

    खूबसूरत भाव और शब्द संयोजन

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर भाव लिए रचना .....

    ReplyDelete
  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

    ReplyDelete
  5. समर्पण और प्रेम से भरपूर रचना के भावों ने भावविभोर किया ...!

    ReplyDelete
  6. रोके से रुका कब नेह ....................यूंही रुक जाते हैं
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति

    तुम से ही मेरा ये जीवन ........................धार तुम्हीं
    बेहतरीन गीत जो सच में पाठक को पूरा पढने और सराहने पर मजबूर कर दे
    बधाई

    ReplyDelete
  7. एक बार आपने फिर से साबित कर दिया की आप दिल से सोचते और लिखते है
    आपका लिखा एक एक शब्द दिल की जुबा बयान कराता है ....बहुत प्यार भरी कविता पढने को मिली
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  8. फिर भी विश्वास नहीं तुमको ये नयन सदा झुक जाते हैं
    कुछ शब्द तुम्हारे अधरों पर, आ-आ के यूंही रुक जाते हैं
    ज्यूँ गीत कोई प्यासे मन के.... हर सांझ मुझे तरसाते हैं

    बहुत ही अच्छी प्रस्तुति..... होली की हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete