Tuesday, February 28, 2012

मेरे ही फैसलों ने

थी हसरत-ए-परवाज़ मगर हौसला न था !
या यूं भी था की सर पे मेरे आस्मा  न था !!


सारे शहर मैं सबने जिसे आम कर दिया !

महफ़िल मैं तेरी यार मेरा तज़करा न था !!

बेगाने इस  शहर  की, तनहाइयाँ न पूछ !

अपना कहें किसे कोई अपने सिवा न था !!

मैं  भी रह गया उन्ही काँटों मैं उलझ कर !

इसमें खता क्या मेरी अगर रास्ता न था !!

चेहरे पे जम गई थी, ख्यालों की सलवटें !

ऐसे तो हमसफ़र था मगर बोलता न था !!

मेरे ही फैसलों ने मुझे बरबाद कर दिया !

यूं  शक्ल पर उसकी कुछ भी खुदा न था  !!

Friday, February 24, 2012

मेरा नाम न लेना..


कभी पुष्प  तुम्हारे अधरों पर,
खिल जाये तो मुस्काना तुम !
कभी कंजई आंखे शोख लगें ,
तो इतराना... शरमाना तुम !
जो पूछे कोई ये, कैसे  हुआ ,
किसने हैं ये मोहक रूप रचा !
मेरा नाम न लेना.. कह देना.. मौसम की ठिठोली थी ये जरा !!
कभी पुष्प  तुम्हारे अधरों पर, .......

जब तेज हवा..... वासंती हो,
ओ क्षितिज जरा सतरंगी हो!
तब बनना सवरना इठलाना ,
जब इन्द्रधनुष भी, संगी हो !
जो पूछे कोई ये, रंग हैं क्या.
चटकीला सा ये संग हैं क्या !
मेरा नाम न लेना.. कह देना.. गुजरी हुई होली  थी ये जरा !!
कभी पुष्प  तुम्हारे अधरों पर, ......

कोई गीत बिसरते  चेहरों पर,
आ जाये सुलगते, अधरों पर!
गालेना किसीको सोच के तुम,
आहिस्ता गुजरते, प्रहरों पर !
जो पूछे कोई ये, राग हैं क्या,
सांसों का ये आलाप हैं क्या !
मेरा नाम न लेना.. कह देना.. खुद से ही यूंही बोली थी ये जरा !!
कभी पुष्प  तुम्हारे अधरों पर,......
 
कभी आओ यूंही जो बागों में ,
बन्ध प्रीत के कच्चे धागों में !
गर मैं न वहां पर मिल पाऊँ ,
आऊंगा सलोने... ख्वाबों में !
जो पूछे कोई ये, बात हैं क्या ,
गहरा सा, उच्छ्वास  हैं क्या !
मेरा नाम न लेना.. कह देना..यादों  की रंगोली थी ये जरा !!
कभी पुष्प  तुम्हारे अधरों पर,......

--
Harish Bhatt

Monday, February 20, 2012

ठहराव

 
पलकों का
उनींदापन

अब थम जायेगा

शायद,

सीने की हरारतों को

विराम भी !

छट जायेगा

वक़्त बेवक्त की उम्मीदों

का धुधलका ,

निकल जायेगा
वर्षों से पसरा
अनमना सा गुबार !

कम हो जाएगी
हथेलियों की तपिश ,
विस्मृत नहीं कर पायेगी
तारों के टूटने की झलक !
डूब जायेगा
झूठी तसल्लियाँ
देने मैं माहिर
सूरज ,
हमेशा के लिए
देवदार  के पेड़ों के पीछे !
अब न भरमायेगा
क्षितिज का
वो सम्मोहन ,

........
आज
मैंने तुम्हारा
आंखरी 
ख़त 
जला जो दिया हैं
........
अब उस
दराज में
खाली लिफाफे सा
ठहरा हुआ सा हूँ
बिना
पता लिखा हुआ
मैं..!!
--
Harish Bhatt

Tuesday, February 14, 2012

प्रणय दिवस पर


सलीके से मुझे वो आज भी, पहचान लेती है !
मैं जब घर थक के आता हूँ हथेली थाम लेती है !!

न पूछा आज तक मैंने, न उसने ही कहा कुछ !
जुबां खामोश रहती है,, निगाहें जान लेती है !!

कभी जब ख़फा होती, सताने के लिए मुझको !
न रह पाती ज़ुदा मुझसे, यूंही बस मान लेती है !!

में आगे जा नहीं पाता, यहीं तक मेरी 'सीमा' हैं !
वो नजरों में रखती हैं,, जतन से काम लेती है !!

वो उसके गेसुओं में रात,, गहराती हैं जब भी !
मेरी हर आवारगी भी तो, वहीँ आराम लेती है !!

कोई जब पूछता हैं जिंदगी भर का सिला क्या हैं !
मैं उसका नाम लेता हूँ,,, वो मेरा नाम लेती है !!

यही बस जिक्र है उसका, यही पहचान है उसकी !
मेरी नज्में उसी का नाम, सुब्ह-ओ-शाम लेती है !!

हरीश भट्ट, हरिद्वार 

Monday, February 13, 2012

हे ऋतुराज ...न आना तुम ..

 



न ही विचलन और  न, कुछ सन्दर्भ होगा
तुम्हे ऋतुराज होने का कदाचित दर्प होगा
वासंती कर के छोड़ोगे.. धरा में जानता हूँ
हर इक धानी चूनर का यही उपसर्ग होगा  

न तुम अवरुद्ध हो न बद्ध हो इंकार से कोई
न रोके रोक पाया हैं किसी तकरार से कोई
हैं सब ही कुसुम पल्लव तुम पे नतमस्तक
स्फुटित कोंपल हैं, चकित व्यवहार से कोई  
 
हैं कामातुर भ्रमर भी, ओ' पुष्प पल्लव भी
हैं कैसा शोर ये नंदन  में, और कलरव भी
ये चहु ओर पसरा फागुनी सा, इत्र कैसा हैं  
यहाँ यौवन सदृश्य संसर्ग हैं, ओ शैशव भी 
 
तुम्हे क्यों भान हो किसी कि.. वेदनाओं का
तुम्हे क्यों ध्यान किसी कि व्यस्तताओं का  
तुम्हे सुख दुःख से किसी के क्या ही लेना हो
तुम्हे तो भान केवल हैं नियम बद्धताओं का  
 
न तुम साध्य हो मेरे न साधन ही बने तुम
न तुम आराध्य हो मेरे न प्रीतम ही बने तुम
मुझे कुछ भा नहीं पाया ये ऋतुराज सा होना
न तुम बाधक ही हो पाए न संगम ही बने तुम
 
जो फिर आओ मेरे रस्ते तो इतना तो करना 
बीती रुत कि वो  बातें जरा विस्तार से सुनना
जो ऐसा कर सको तो तुम्हे ऋतुराज कह लूँगा
न कर पाओ तो मत आना न मिलना मिलाना  
 
 न कर पाओ तो मत आना न मिलना मिलाना 

Thursday, February 9, 2012

मुझे तुमसे तो मोहब्बत नहीं थी लेकिन...


मैं सोचता हूँ कुछ ऐसा यकीं नहीं होता
मेरी तुझको तो जरूरत नहीं थी लेकिन
तमाम उम्र मैं तेरी राह यूंही तकता रहा
मुझे तुमसे तो मोहब्बत नहीं थी लेकिन

तेरी हर बात मेरे जहन मैं लौट आती हैं
तेरे अंदाज तेरा जिक्र जब होता हैं कहीं
मेरे ख्वाबों के गुलिस्तां में बहार आती हैं
सुब्ह होती हैं तेरी दीद की हसरत लेकर
शाम बेसाख्ता ही छत पे गुजर जाती हैं

मुझे तुमसे तो मोहब्बत नहीं थी लेकिन ...

जाने क्यों मेरी नीदों से, बगावत सी रही
जाने क्यों मेरी सांसों से अदावत सी रही
खिड़कियाँ धूप लिए आती थी तेरी खुशबू
तन्हा गोशों में तेरे आने की आहट सी रही

रास्ते तल्ख़ ख़ामोशी का बार उठाये हुए
लौट आते हैं तेरे दर से.. सर झुकाए हुए
न कोई आहट न शिकन न सदा ही कोई
राह तकता हूँ ज़माने से नजर चुराए हुए

मुझे तुमसे तो मोहब्बत नहीं थी लेकिन...

फिर भी हसरत की तुम्ही से चुरा लूं तुमको 
पास बैठा के तुम्हे पहलूँ में अकेले में कभी
कोई देखे न कहीं पलकों में छुपा लूं तुमको
यकीं था  की तुम आओगी हर सदा पे मेरी
आजमाने के बहाने से ही बुला लूं तुमको 

मुझे तुमसे तो मोहब्बत नहीं थी लेकिन...

अब भी मेरे राजदां  हैं जो तुझसे बाबस्ता
अब भी कुछ दोस्त मेरे तेरा पता पूछते हैं
जब भी आता हैं तेरा नाम जेर-ए-लब मेरे
बाद मुलाकात क्या हुआ ये बता, पूछते हैं

ये तीरगी ये तलातुम जो मुझको घेरे हैं
जर्द आँखों मैं जो तनहाइयों के... घेरे हैं
जो भूलती भी नहीं, याद भी नहीं आती
कहानियाँ  जो कभी बाज़ भी नहीं आती
कहीं ऐसा तो नहीं आखों से बयां होता हो
दिल में कुछ हो, कुछ और अयाँ होता हो

मुझे तुमसे तो मोहब्बत !!
 नहीं थी  ??

लेकिन........