Thursday, September 1, 2016

शौक-ए-आशनाई

मुझे तो तुमसे चलो,, शौक-ए-आशनाई हैं !
तुम्हें भी बाज़ न आने की, बुरी आदत क्यों !?
तेरी गली से गुजरता हूँ ....एहतियातन मैं !
वक्त बेवक्त तेरी भी तो, छत पे आमद क्यों !?
तुम्हारे नाम लिखे थे, जो ख़त मोहब्बत में !
वो मांगते हैं मुझसे आज, अपनी कीमत क्यों !?
चराग़ बुझने लगे .........महफ़िलें तमाम हुई !
वक्त-ऐ-रुखसत, तेरे चहरे पे अब ये वहशत क्यों !?
तुम्हें तो मेरी मोहब्बत पे,... एतबार ना था !
किसी को चाहूँ अगर मैं, तो फिर शिकायत क्यों !?
............हरीश.........

कोई..कोई...दिन तो बस.. थकाऊ...और उबाऊ सा ही होता हैं बस !!😞😞


ज़िस्त के मंज़र,, बदलना चाहता हूँ !
थक गया हूँ,, घर बदलना चाहता हूँ !!
तल्खियों से कब तलक, छिपता फिरूं !
लाज़मी हैं..... सर बदलना चाहता हूँ !!
इक तेरी महफ़िल, न रास आई मुझे !
ग़र इज़ाज़त हो तो, चलना चाहता हूँ !!
बस तेरी यादों को, सुलगा कर कहीं !
बर्फ़ की मानिंद, पिघलना चाहता हूँ !!
मुस्कुरा देने का.....कुछ सामान कर !
जिंदगी, तुझसे, बस इतना चाहता हूँ !!
..........हरीश.........

एक तेरी ही दीद को

इक तेरी ही,, दीद को तरसा हूँ मैं !
जब भी तेरे,, शहर से गुजरा हूँ मैं !!
यूं तो चारों सिम्त हैं.... यादें तेरी !
लोग कहते हैं,, बहुत तन्हां हूँ मैं !!
किसने रक्खा हैं, मोहब्बत नाम ये !
क़त्ल करने का, हुनर कहता हूँ मैं !!
.......हरीश.....

एक कविता...चेहरों वाली किताब पर...हलके फुल्के अंदाज की ...

 
...सुनो,
'लोनली' सा हो गया हैं
..कई दिनों से मेरा 'इनबॉक्स'
तुम्हारे मैसेज की 'ग्रीन लाइट'
....'ब्लिन्क' नहीं होती अब
..यूं भी तुम
'टर्नऑफ' मोड पर रहते हो
...हमेशा "अनअवैलेबल'
मगर जानता हूँ
..ओंनलाइन होते हो जब
पता चल ही जाता हैं
...साइडबार में
तुम्हारे 'लाइक्स' और 'शेयर्स'
....'स्क्रोल' होते हैं जब..!
तुमने,, मेरे लिए भले ही
'नोटीफिकेशंस' 'ऑफ़' कर रक्खा हैं
..पर आभास हो जाता हैं ..जब
चेंज कर लेते हो तुम 'डीपी'
...या कोई नयी 'पोस्ट'
लो फिर चेंज कर ली हैं
...तुमने 'डीपी" अपनी
अब तुम्ही कहो की कैसे बताऊ
...की ये 'रोज़' वाली 'पिक'
मत लगाया करो 'रोज़' 'रोज़' !
...मुझे पता हैं
अब तुम मेरे 'लाइक्स' का
...'वेट' नहीं करते
मेरे 'कमेंट्स'
...'डिलीट' करने लगे हो तुम
ग्रुप फोटोज पे तुम्हारा
"फीलिंग क्रेजी विद लवली फ्रेंड्स "
..वाला कमेंट्स ..
सिर्फ मुझे 'टीज़' करने के लिए हैं न
...ओह 'डियर'..
'इग्नोरेंस' की भी, कोई तो हद होगी !
..पर मन
आज भी होता हैं दुखी
तुम्हारे 'स्टेटस अपडेट्स' पर
...जब 'फीलिंग सेड' होते हो
बदल लेता हूँ तब
...मैं अपना 'स्टेटस' भी
'फीलिंग' 'वैरी सेड' जैसा
..सच कहूं
बिलकुल 'सेम' सी 'फीलिंग' आती हैं तब !
सोचता हूँ
...'डिएक्टिवेट' कर लूं खुद को
ये चेहरों वाली किताब के पन्ने
...'ब्लर' से लगने लगे हैं,
कभी कभी
"'शायद आप इन्हें जानते हैं'"
....ये वाला मैसेज..
तुम्हारी 'वाल' पर भी तो आता होगा
...मेरी 'डीपी' आज भी वही हैं
..'स्टेटस' भी वही, इंतज़ार में
काश की एक बार तो मुझे,,
'सर्च' करते तुम
...निष्ठुर हो पर तुम,
देख के अनदेखा करना
...शगल हो गया हैं तुम्हारा !
oh god..ये attitude तुम्हारा..उफ्फ्फ़..
..लेकिन
यूं उम्मीद का दामन
अब भी नहीं छूटा हैं
...यकीन भी हैं
की लौटोगे किसी दिन
..तुम फिर से मेरी किसी पोस्ट पर
और फिर से जगमगाएगा
....मेरा 'इनबॉक्स'
मेरी 'वाल' पर लगेंगे फिर से
...तुम्हारी दोस्ती के 'पोस्टर'
रंग बिरंगे 'स्क्रेप्स' 'सेंड' करने की आदत
..हैं न अब भी तुममें..??!
..सुनो तो,,
एक बात पूछूं.. बुरा मत मानना...
...अभी तक
'ब्लाक' नहीं किया हैं न तुमने मुझे
क्यों भला !!??
मत बताओ..पता हैं वैसे मुझे !!
.....हरीश....

मुझे छू ज़रा

मुझे छू ज़रा मेरा ज़िक्र कर, मुझे रोक कर के तू देख ले !
कहीं लौट के भी न आ सकूं, मुझे आँख भर के तू देख ले !!
बेज़ा ख़याल...
...हरीश...

मेरे कुछ अज़ीज़ दोस्तों के लिए......


वो आते हैं तो महफ़िल में, सियासत गर्म रखते हैं !
बस इतना हैं निगाहों की.... ज़रा सी शर्म रखते हैं !!
अज़ब अंदाज़ हैं उनका.....सलीके से अदावत का !
शिकायत भी वो करते हैं, तो लहज़ा नर्म रखते हैं !!
.........हरीश..........

नदी सी हो ना तुम


तुम
झरने सी थी न तुम
बेलाग -बेखौफ़- निर्झर
निष्कपट, निष्कलंक भी
छन्न से गिरा करती थी
तलैइयों में
शायद बचपन था तुम्हारा
और बचपना भी !
तुम्हारा उफ़ान बेजोर हैं अब
तोड़ देती हो कभी कभी
स्वयं के तटबंधों को
यौवन का विस्तार उश्रंखलित हैं
चिर यौवना नदी सी
लगने लगी हो
अब तुम !
विस्तार बड़ रहा हैं तुम्हारा
समवेत हैं अब
सब कुछ तुममे
विचलित नहीं होती हो
अब तुम बाह्य प्रतिबंधों से
गाम्भीर्य अनवरत हैं तुममे
निरंतरताओं में
कैसी स्थिरता हैं अब ये
दरियाह होने की
विडम्बना भी !
कल ,
विस्मृत हो जाओगी तुम
निराकार भी
तिरोहित होने को हो अब
खिलखिलाती चंचलता
मदमस्त उश्रंखलता
भरपूर यौवन
और सम्पूर्ण गाम्भीर्य के साथ
अनंत सागर के
आगोश में !!
नियति..यही होगी तुम्हारी !!
....हरीश....