Thursday, September 1, 2016

कोई..कोई...दिन तो बस.. थकाऊ...और उबाऊ सा ही होता हैं बस !!😞😞


ज़िस्त के मंज़र,, बदलना चाहता हूँ !
थक गया हूँ,, घर बदलना चाहता हूँ !!
तल्खियों से कब तलक, छिपता फिरूं !
लाज़मी हैं..... सर बदलना चाहता हूँ !!
इक तेरी महफ़िल, न रास आई मुझे !
ग़र इज़ाज़त हो तो, चलना चाहता हूँ !!
बस तेरी यादों को, सुलगा कर कहीं !
बर्फ़ की मानिंद, पिघलना चाहता हूँ !!
मुस्कुरा देने का.....कुछ सामान कर !
जिंदगी, तुझसे, बस इतना चाहता हूँ !!
..........हरीश.........

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