Saturday, February 5, 2011

कथा मधुलता की

दोस्तों ऊतराखंड में चंद वंश  के काल की लोक गाथाओं मैं प्रचलित एक प्रणय कथा के अंतिम कुछ पन्नो की व्यग्रता सुनाता हूँ  आपको, कथा बहुत लम्बी हैं पर अंत सभी प्रणय कथाओ  की तरह  ही होता हैं जब रानी मधुलता अपने प्रियतम सूर्यशेखर  से मिलने जाती हैं पर इसका पता रानी मधुलता के भाइयों को लग जाता हैं ओर वो रस्ते में सूर्यशेखर  को  घेर लेते हैं ओर इस लड़ाई में सूर्यशेखर  की विजय होती हैं ओर वह ३६  सैनिको को मौत की नींद सुला कर भी सरयू के तट पर पहुचता हैं जहां मधुलता उससे मिलने आने वाली थी किन्तु प्राणों की बलि दे कर,, लोकोक्ति कहती हैं की रानी मधुलता ने वही अपने हाथों से सरयू  के किनारे चिता बनाई  ओर अपने प्रियतम के साथ ही अग्निसमाधि ले ली   


अर्द्धरात्रि  में ....स्वप्न सजाये !
निकली थी इक.. नार अकेली !!
दुग्ध वर्ण.. .. परिकल्प सुंदरी !
मृगलोचन, मृगसम अलबेली !!

अधर सुधामय, चक्षु कांतिमय !
मन में इक......... संकल्प लिए !!
तन व्याकुल, पर दृण निश्चय से ! 
पिया मिलन की .....आस लिए !!

मार्ग कठिन पर निश्चल मन था !
रोके रोक नहीं ........पाई बाधाए !!
रुक रुक कर ...सजदे करती थी !
चारू चन्द्र की .........चंचलताए !!

दूर कहीं ...........तारों के आगे !
पगडण्डी हैं ..............गई जहां !!
वहीँ कहीं ... प्रियतम हैं उसका !
वही कही ......मंजिल के निशाँ !!

कदम तीव्रतर...... होते जाते !
ज्यों ज्यों मंजिल .पास आती !!
विरहाग्नि ........सीने में ऐसी !
अन्तकरण तक... .धधकाती !!

कदम दोकदम चार कदम अब !
कोई फासला.......... दूर न था !!
किन्तु देवहठ, उनका मिलन  !
अब विधना को ....मंजूर न था !!

दूर क्षितिज अभि अरुण नहीं था !
अभी रात्रि का..... प्रहर  शेष था !!
छूट रही......... तारों की शाला !
दूर हो रहा ......तम  विशेष था !!

वहां पार्श्व में ........रण भूमि में !
वीर अकेला........ डटा हुआ था !!
कई विरोधी............ नरमुंडों में !
काल दूत सा...... अड़ा  हुआ था !!

वीर हिमालय पुत्र...... सूर्य सम !
ऐसे वीर को ........क्या ही कहें  !!
ऐसे अकेला लड़ा.... .वो अरि से !
सर छत्तिस  धड पर ....नहीं रहे !!

लो पहुँच गई वो नाव घाट पर !
जहां मिलन की.. बात हुई थी !!
यही तो वो प्रतिक्षण हैं जिसमे !
प्रणय की वो शुरुआत हुई थी !!
 
वहीँ वीर वह..... खड़ा हुआ था !
धीर अचल .......मेरु पर्वत सा !!
रक्त रचित सा..... खड्ग लिए !
ओर शत्रु ह्रास को वो तत्पर सा !!

अश्रु झर गए ..श्वाश रुक गया !
उसकी छिद्रित .....देह देख कर !!
रक्त धार.... उन्नत ललाट पर !
कवच को बेधित  बाण देख कर !!

आह की  अंतिम श्वाश शेष था !
प्राण तो बस ..मृतप्राय हो गया !!
हाय ये निष्ठुरता... विधना की !
मिलन विरह ... पर्याय हो गया!!

शोक ! ये कैसा दृश्य .विदारक !
शोक ! ये कैसा...... क्लेश हुआ !!
एक सूर्य...... अरुणिम होता था !
एक सूर्य........... निश्तेज हुआ !!

7 comments:

  1. बहुत ही उत्कृष्ठ रचना है| धन्यवाद|

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  2. सर कथा तो अच्छी चुनी ही है आपने पर अभिव्यक्ति भी बहुत ही अच्छी है | शुरुआत रोमांचित करती हुई और अंत तक जाते जाते काफी मार्मिक हो पड़ी है | कुछ पंक्तियों में छायावादी कवियों के कुछ खास गुणों का भी पुट है इस काव्य में, सब्द चयन भी काफी उम्दा है |
    कुल मिलकर कहूँ तो एक उत्कृष्ट रचना एक बार फिर से निकली आपके कलम से पाठकों के लिए |
    ऐसी उम्दा लेखन से हमे भी प्रेरणा मिलती है कुछ नया, कुछ अलग सा लिखने की | आपकी कलम सदा सजीव बनी रहे और हमे ऐसी उम्दा रचनाएँ मिलती रहे पढने को यही दुआ है माँ सारदे से |

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  3. हरीश जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति........... रानी मधुलता और सूर्यशेखर की ये कहानी दिल को छु गयी.

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  4. बेहद सुन्दर प्रस्तुति
    अति उत्कृष्ट रचना
    बहुत पसंद आई पोस्ट
    आभार

    शुभ कामनाएं

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  5. उत्तराखंड की इस छवि से परिचित करने का आभार.

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