Saturday, April 29, 2017

दोहा मुक्तक

तुझ से यूं लागी लगन, नहीं चला फिर जोर ! 
जाने ये किस जन्म से, ...बधी प्रीत की डोर !! 
माया ने रोका बहुत,...... रुका नहीं ये स्नेह !
मैं तुझ तक खिचता गया, अरु तू मेरी ओर !!

कविता का होना

मैं 
देखता हूँ 
जब भी तुम्हें 
तुम मैं उतर जाता हूँ 
और तुम मुझमें 


वही वो क्षण होता हैं 
जब 
रचनात्मक भाव 
रोप देते  हो तुम
मुझमें
 अनजाने ही

तुम्हारी
मुस्कुरहाट
सींच देती हैं 
 सस्नेह ही
मन रुपी मृदा ..
नम हो जाती हैं

शब्दों का  अंकुरण
स्फुटित होता हैं
ह्रदय में

तुम्हारी सांसों की
प्राणवायू ले
कांतिमय चक्षुओं की 
सौर्य उर्जा ले
भावों के आलम्बन से
ओत प्रोत

तुम्हारी
खनकती आवाज से पोषण ले
उग आती हैं
गीतों की अमर बेल
तुम्हारा प्यार
खिल उठता हैं
ज़िस पर
अनायास ही
प्रफुल्लित पलाश की तरह

और  वो  कहते हैं
ये रचना
मैंने लिखी हैं
अब तुम्ही बताओ
इसमें
मेरा क्या कसूर भला 

कौन मरता हैं, आशिकी के लिए !!

इश्क़ आसां नहीं, किसी के लिए !
कौन मरता हैं, आशिकी के लिए !!

किस ज़माने, की बात करते हो !
ये जमाना हैं, दिल्लगी के लिए !!

मेरा ओरों से,, वास्ता क्या था !
मैं यहाँ हूँ तो, आप ही के लिए !!

तुझसे रोशन हैं, गैर की महफ़िल !
मैं भटकता हूँ,, तीरगी के लिए !!

तुमसे दो बात, प्यार की कर लूं !
पास बैठो तो,, दो घड़ी के लिए !!

मेरी बातों को दिल पे मत लेना !
यूंही कह बैठा, बतकही के लिए !!

उसके चेहरे पे, तिल नहीं हैं वो !
उसको देखो तो, सादगी के लिए !!

तेरी आँखों में, मिल ही जायेगा !
एक अदद शेर, शायरी के लिए !!
हरीश भट्ट ....

रोज़ छपता हूँ मैं,​ अखबारों की तरह !!​

भीड़ का हिस्सा हूँ, हजारों की तरह !​
रोज़ छपता हूँ मैं,​ अखबारों की तरह !!​

बेपता हूँ मगर किसी तलाश में हूँ 
!​
दर-ब-दर इश्क केमारों की तरह !​!

मेरे हर सिम्त, हैं तो गुलाबी चेहरे !​
मैं गुलों में रहता हूँ, खारों की तरह !!

मेरे दोस्त हैं जो, वतन पे मरते हैं ! 
 
​मैं भी दिलफेंक हूँ,, यारों की तरह !!

मेरा हर दिन, खिजां में गुजरा हैं  ! 
अब क्या  लौटूंगा, बहारों की तरह !!

मुझे महफ़िल में, ना तलाशों यारों !
खुद की गर्दिश में हूँ, तारों की तरह !!

सुना हैं चेहरे पे उनके, ​खिला हैं पहला गुलाब !​

किसी की गर्म निगाहों में ढल के देखते हैं !
जरा सा बर्फ की मानिंद पिघल के देखते हैं !!

बहुत किये हैं उजालों ने, जिंदगी में सितम !
कुछ एक पल को, अंधेरों में चल के देखते हैं !!

वो जब भी गुजरते हैं, ठहर जाते हैं हर्फों पर !
अभी कुछ जलवे, वो मेरी गजल के देखते हैं !!

बहुत हुआ नहीं बदला, इस शहर का मिजाज !
हम अपनी आँखों के चश्में, बदल के देखते हैं !!

सुना हैं चेहरे पे उनके
, ​खिला हैं पहला गुलाब !​
चलो हम भी जरा,​ घर से निकल के देखते हैं !!​

तुम्हारे चेहरे का ये मौसम
,​ बदलना चाहता हूँ !
सुबह की धूप में कुछ देर, टहल के देखते हैं !​

बहुत चला हूँ​ मैं ​तन्हां ही, जिंदगी का सफ़र ​!​
​गर एतराज न हो तो , साथ चल के देखते हैं !!​

मेरी वफ़ा को ठुकरा दिया था  जिसने कभी
उन्हीं के सीनों पे अब मूंग दल के देखते हैं 

कुछ दोहे

प्रकृति
१.
शाम सुहानी हैं मगर, विचलित हैं आकाश !!
नदियों में कलरव नहीं, मन में नहीं उजास !!
२.
वृक्ष नही वन में कहीं, जल विहीन हैं ताल !
सूनी सूनी गोद हैं, .........धरती हैं बेहाल !!

आराध्य
१.
तुझको क्या मैं नाम दूं ,राम कहूं रहमान !
घट घट तेरा वास हैं, ..पग पग तेरी शान !!
२.
हरि बिन पार न पावही, लाख करे तू टाल !
कर्म बिना पर गति नहीं, ये कैसा जंजाल  !!
 
प्रिय
१.
कबहु प्रीत ना कीजिये, कठिन प्रीत की रीत !
ठेस लगे से गिर पड़े, ..ज्यों माटी की भीत !!
२.
देख सखी सुन ले जरा,....... बात जरा गंभीर !
प्रेम की बात न कीजिए, विकट बहुत यह पीर !!
 उपदेश
१.
पद्मासन में बैठ कर, दोनों हाथ पसार !
प्राण वायु को साध ले, यही योग का सार !!

२.
हो विमर्श हर बात पर, आपा काहे खोय !
मत का चाहे भेद हो मन का भेद न होय !!

सामाजिकता
१.
मेरा दुख सब से बड़ा, सोचे ये दिन रात !
क्यों तू खुद को दोष दे, घर घर की हैं बात !!
२.
बेटी ब्याह न दीजिये, .....देकर दान दहेज़ !
जीवन भर सुख ना मिले, ज्यों काँटों की सेज !!