Wednesday, May 4, 2011

खो दिया हैं मीत मैंने ...



आज फिर इक चाह ने देखो नमित सा कर दिया !
तुमने यूं देखा पलट मुझको चकित सा कर दिया !!

फूल रजनीगंधा के.. चहु ओर विस्मृत हो गए थे !
कल्पना के सब रंग बिखरे धूल धूसित हो गए थे !!
कौन सा सन्दर्भ हैं ..जिसने भ्रमित सा कर दिया !
तुमने यूं देखा पलट मुझको चकित सा कर दिया !!

खो दिया हैं मीत मैंने ..गीतिका के सब सुरों को !
दिग्भ्रमित बैठे हुए ...परिकल्पना के अक्षरों को !!
ओस बूंदों ने सुमन-आनन 
द्रवित  सा कर दिया !
तुमने यूं देखा पलट मुझको चकित सा कर दिया !!

सोचता हूँ कैसे शंशय इन  नैनों से प्रेषित हो गए !
शब्द क्या कहने थे मुझको क्या समर्पित हो गए !!
सामने बैठा था मेरे.. क्यों क्षितिज सा कर दिया !
तुमने यूं देखा पलट मुझको चकित सा कर दिया !!

आज फिर इक चाह ने देखो नमित  सा कर दिया !
तुमने यूं देखा पलट मुझको चकित सा कर दिया !!

2 comments:

  1. बहुत खूब कहा..बधाई


    दुनाली पर देखें
    बेटे की नज़र में क्रूर था लादेन

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  2. ''शब्द क्या कहने थे मुझको.........क्या समर्पित हो गए...''''...........

    बड़ी सच्ची बात है.................और चकित ह्रदय......कर जाता है .....ऐसा..........अक्सर.....

    सुंदर रचना....

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