आहटें चुप मंजर उदास हैं शायद
कोई फिर ....आस पास हैं शायद
अपनी पलकों को गिराओ तो सही
राह तकती........तलाश हैं शायद
अब भी वो ख़त दराज में हो कहीं
यकीं नहीं हैं .....क़यास हैं शायद
उसको पैमाना-ए-जिंदगी मत दो
उसको सागर सी प्यास हैं शायद
अब वो किसी से वफ़ा नहीं करता
उसी बेवफा की ...आस हैं शायद
कितने रोये तड़पे थे उसके जानेपे
आदमी हैं की....... लाश हैं शायद
बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर उम्दा
ReplyDeleteसुन्दर गजल। आभार।
ReplyDeletebahut acchi rachna hai ..
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