Wednesday, April 29, 2015

ज़लज़ला : एक त्रासदी

वो जो शिद्दत से घर गया होगा !
कच्ची मिट्टी से, भर गया होगा !!

कितनी मासूम,, जिंदगी लेकर ! 
जलजला था,, गुजर गया होगा !!

सर पे जब छत दरक रही होगी !
माँ से चिपका, वो डर गया होगा !!

अब न चीखें,,  न कोई आवाजें !
उसको छोड़ो, वो मर गया होगा !!

हाथ और पैर का तो, क्या रोना ! 
जाने कितनों का, सर गया होगा !!

अब न मंदिर बचा,, न चौराहा !
काठ का घर था, गिर गया होगा !!

जिंदगी,, फिर भी मुस्कुराती हैं !
कुछ दुआ का, असर गया होगा !!