Saturday, February 25, 2017

​ए​क तेरे गम के सिवा मुझे


तुझे चाहा...मैंने था उम्र भर !
ये हौसला भी तो कम न था ​!!​
​ए​क तेरे 
गम के.. सिवा मुझे !
मुझे
और कोई भी गम न था !!

तूने साथ मेरा.... दिया नहीं !
मेरे हमकदम तू....रहा नहीं !!
था अकेला फ़सल-ए-बहार मैं !
कोई फूल भी तो खिला नहीं !!
 
तुझे पाया फिर भी ख्याल में !
ये भी राबता कोई कम न था !!

​ए​
क तेरे
​...​
गम के सिवा मुझे
​!​
 
मुझे
​​
और कोई भी गम न था ​!!

मेरी शाम अब भी.. उदास हैं !
इसे कैसी जाने ये.. प्यास हैं  !!
हैं ये सूनी सूनी सी.. रहगुज़र !
किसी कारवां की...तलाश हैं !!
तेरे हाथ में .....मेरा हाथ था !

ये साथ भी.. कोई​ कम न था !!
​ए​क तेरे
​ गम के.. सिवा मुझे
​!​
 
मुझे और कोई भी गम न था !! 
​​


मेरी हसरतों का.. सिला हैं ये !
मुझे फिर भी कोई गिला नहीं !!
तेरा इसमें कोई... कसूर क्या !
तुझे वक्त भी तो.. मिला नहीं !!
तेरा जिक्र.... तेरा ख्याल था !
तुझे सोचना कोई कम न था !!

एक तेरे 
गम... के सिवा मुझे !

मुझे और कोई भी गम न था !!​

Friday, February 24, 2017

कभी तो पास बैठो तुम,,

कभी तो पास बैठो तुम,, कभी तो मुस्कुराओ तुम!
ज़िसे अपना समझ लूं मैं, कोई तो गीत गाओ तुम!!
मुझे तुमसे मोहब्बत हैं, बस इतना ही तो कहना हैं!
ज़रा कांधे पे सर रख दो, ज़रा नजरें झुकाओ तुम!!

ये मंजर देख कर तुमको, यकीनन रुक गया होगा!
के सजदे में ज़मी होगी, गगन भी झुक गया होगा!!
गुजरती हैं समन्दर की.... हवायें तुमको छू कर के!
की तकते हैं नजारे भी, ज़िधर भी रुख गया होगा!!

के दो दिल एक जां हैं हम, मुझे ये तुमसे कहना हैं!
ज़िधर भी तुम चलो हमदम, हमें तो साथ चलना हैं!!
अकले तुम मेरे बिन दो कदम भी,, चल न पाओगे!
की तुम हो दीप मैं बाती.. हमें तो साथ जलना हैं!!

मोहब्बत कर तो लें... लेकिन निभाई कैसे जायेगी!
हैं कितनी दूरियां हममें..... तुम्हारी याद आयेगी!!
हां मैं लौटूँगा मर कर भी.... ये मेरा तुमसे वादा हैं!
की मेरी राह तकना तुम.... मोहब्बत मुस्कुरायेगी!!

जिसे मैं गा नहीं पाया , प्रिये वो गीत हो तुम !

जिसे मैं गा नहीं पाया , प्रिये वो गीत हो तुम !
जिसे भूला  नहीं हूँ मैं,. सखे वो प्रीत हो तुम !!

गीतिका का सार तुम हो, शब्द का आधार हो !
तुम सुरों की वीथिका हो, ज्ञान का भण्डार हो !!
नित्य कानों में झरे जो, शाश्वत  संगीत हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया .... प्रिये वो गीत हो तुम !!

कभी जो पुष्प बन जाऊं, मुझे तुम तोड़ लेना !
कभी जो पवन  हो जाऊ,, गगन से होड़ लेना !!
तुम्हें ना हार का डर हैं,, हमेशा  जीत हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया ...प्रिये वो गीत हो तुम !!

मैं माना क्षुद्र हूँ लेकिन...,.पतनकारक नहीं हूँ  !
मुझे तुम साथ ही रखना, कि मैं मारक नहीं हूँ !!
कि नाहक ही परेशां हो, क्यों भयभीत हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया ....प्रिये वो गीत हो तुम !!

सुनो तुम प्राण हो मेरे,  तुम बिन अन्धकार  हैं !
दिए की भांति जलता हूँ.... न कोइ परावार हैं !!
तुम भले हो दूर मुझसे..मगर मन मीत हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया .... प्रिये वो गीत हो तुम !!

....हरीश भट्ट .....

फिर कभी प्रेम लिखने को मत कहना

प्रिये
फिर कभी
प्रेम लिखने को
मत कहना

प्रेम में 
वीतराग होना
ठीक वैसा ही हैं
जैसे
अनमना बसंत
छू के लौट जाये
कोंपलों को
सहलाये बिना
देख लेना
मैं रुक नहीं पाऊंगा
तुम रोक नहीं पाओगी

प्रेम
कोई गणितीय सूत्र भी नहीं
सैधान्तिकता भी नहीं
परिमार्जन नहीं हुआ
तो अंतर का विच्छेद
स्तब्धकारी होगा
कचोट देगा बहुत कुछ
उसे
परिधिहीन रहने दो
अकथित ,अघोषित भी
क्योंकि
मैं प्रेम में
व्यक्त न हो पाउँगा
और तुम 

परित्यक्त न कर पाओगी 

प्रेम
पाणिग्रहण की
सप्तपदी भी नहीं
की जीवनपर्यंत
वचनों का आधिकारिक बोझ
सीने पे रक्खे रहें
अकर्मण्य सी स्थिति में भी
निभाने न निभाने के
अंतर्द्वंद में भी
इसीलिए कहा
की में जब्त न हो पाउँगा
तुम तृप्त  नहीं हो पाओगी 

यूं भी
प्रेम का सीमांकन
और परिमांकन
मेरे बस में नहीं
परिभाषित होना
कठिन ही होगा न

इसलिए ही कहता हूँ 
की मैं... प्रेम में
विरक्त नही हो पाउँगा
और तुम 
आसक्त नहीं हो पाओगी 
....हरीश भट्ट....

तेरी खुशबू का असर,, देर तक रहा होगा !

तेरी खुशबू का असर,, देर तक रहा होगा !
मेरा कमरा भी अभी तक महक रहा होगा !!

तेरे ही इश्क़ में वो शिद्दत, नहीं होगी वरना !
जमीं से दूर भी कब तक, फलक रहा होगा !!

उसको देखूं उसको सोचूँ की उससे बात करू !
उसके भी जहन में क्या जाने पक रहा होगा !!

मेरे होंठों पर हसीं,, अब तलक भी चस्पा हैं !
तेरा कंगन भी अभी तक, खनक रहा होगा !!

चंद तस्वीरें तेरी अब भी, मेरी दराज़ में हैं !
मेरा इतना तो यकीनन ही हक रहा होगा !!

मैं इस उम्मीद पर हर बार,, लौट आता हूँ !
कोई तो होगा.... मेरी राह तक रहा होगा !!

हरीश भट्ट....

लाख मिन्नत तू करे मुझसे.....मैँ बैठा ही रहूँ !

लाख मिन्नत तू करे मुझसे.....मैँ बैठा ही रहूँ !
दिल तो करता हैं की, तुझसे यूँही रूठा ही रहूँ !!

यूँ तो हसरत थी के आँखों में उतर जाऊँ मैं तेरी !
ये भी क्या कम हैं की पलकों पे मैँ ठहरा ही रहूँ !!

वो मेरा ज़िक्र भी करता हैं,, तो इस सलीके से !
की मैं बदनाम भी हो जाउ तो,, उसका ही रहूँ !!

मुझको बक्शी हैं तेरे ईश्क ने,, तोहमत इतनी !
की मैं दरयाह भी हो जाउ तो,, प्यासा ही रहूँ !!

उम्र भर खुद तो वो, पत्थर की तरह होता गया !
और वो चाहे की मैं उसके लिये, शीशा ही रहूँ !!

मुझको महफिल में भी. सहरा का गुमां होता हैं !
उसकी कोशिश भी यही हैं, की मैं तन्हां ही रहूँ !!
...हरीश भट्ट .....

क्या कहें तुमसे कोई.

क्या कहें तुमसे कोई... शिकवे गिले भी तो नहीं !
ये तो हैं की वक्ते-रुखसत, तुम मिले भी तो नहीं !! 

हमसफ़र तुम हो मेरी, इतना यकीं तो था मगर !
दो कदम भी साथ लेकिन, तुम चले भी तो नहीं !!

इस शहर में दफन हैं..... यादों के कितने कारवां !
उसपे सितम तन्हाइयों के, दिन ढले भी तो नहीं !! 

हाँ तिज़ारत कागजी फूलों की.... दौलत भर गई ! 
गुलमुहर बागों में लेकिन, फिर खिले भी तो नहीं !!

हाथ मेरा थाम लेंगे... ये तो न था अपना नसीब !
पर बंद दरवाजों की मानिंद, वो खुले भी तो नहीं !! 

कब ज़माने में मिला हैं... दोस्तों सबका मिज़ाज़ !
ज़ख्मो पर मरहम लगायें, इतने भले भी तो नहीं !! 

बेवफा था तू ये माना... दिल को समझाया मगर ! 
ख़्वाब आँखों में किसी के.. फिर पले भी तो नहीं !!
......हरीश भट्ट ....

मैं कहने को समंदर हूँ.

तुम्हें मुझसे मोहब्बत हैं, ये सचमुच जानता हूँ मैं ! 
की अपने आप से बढ़ कर, तुम्हें ही मानता हूँ मैं !!
के इक पल का नहीं हैं ये कई जन्मों का नाता हैं !
मुझे पहचानती हो तुम ......तुम्हें पहचानता हूँ मैं !!   

वो मंजर याद हैं मुझको, जिन्हें तुम ने सजाया था !
वो नगमा याद हैं मुझको, जो तुमने गुनगुनाया था !!
कभी हक था मुझे भी, तुमको अपना कह दिया मैंने !
तुम्हें एतराज भी कब था ....तुम्हीं ने आजमाया था !!  

ये लम्हों की जुदाई कोयूं अब मैं सह नहीं सकता ! 
मैं कहने को समंदर हूँ.... मगर मैं बह नहीं सकता !! 
इसे तुम आशिक़ी समझो या तुम दीवानगी कह लो ! ​
तुम्हें कितना भी चाहूँ मैं, ये तुमसे कह नहीं सकता !!