Wednesday, January 12, 2011

ऑरकुट पर अंतिम दिन


ऑरकुट पर अंतिम दिन ...........कैसा दिन था वो मेरा ऑरकुट पे सोचता हूँ तो शर्मिंदगी सी होती हैं,
सोशल नेटवर्किंग की दुनिया पोशीदा दुनिया हैं एक ऐसा संसार हैं यहाँ जिसका ओर छोर नहीं चहरों के पीछे चेहरे हैं यहाँ सचाई कही दम तोड़ देती हैं इन छुपे हुए चहरों के पीछे
मेरी दुनिया नहीं थी ऑरकुट शायद कभी अपना न सका उस दुनिया को बहुतेरे पल समां गए उस मैं कुछ मित्र हुए कुछ मित्र जैसे लगे ओर कुछ से  अजनबी ही रहा कल्पना करना असंभव सा लगता हैं की लोग एक आवरण मैं जीते हैं यहाँ..... छद्मावरण  पहचानना मुश्किल ...बातों से लगेगा की शायद इस जहाँ मैं तुमसे बढ़ कर कोई हो ही नहीं सकता उसके लिए यहाँ लोग टुकड़ों मैं जीते हैं ....किश्तों मैं....सुबह कुछ ओर दोपहर कुछ ओर ..ओर रात होते होते ..समां ही बदल जाता हैं
यहाँ एक तश्नगी  सी हैं लबों पे हर एक के शायद उनका कसूर नहीं हमारी जीवन शैली ही इस प्रकार की होती जा रही हैं की दिन भर की भाग दौड़ मानसिक तनाव रिश्तों मैं बिखराव का असर इस दुनिया पर भी पड़ ही जाता हैं
पर ईमानदारी का आभाव ही देखा मैंने तो जैसे किसी ओट मैं छुप के कोई छोटा बच्चा डरा देता हैं अपने ही साथी को ...ईमानदारी...छु भी नहीं गयी हैं जैसे .........लोग न सूरत  मैं इमानदार  लगे न सीरत मैं ....धोखा तो जैसे मूल मैं हैं इसके
आप कहेंगे धोखा कैसा ........ये तो किस्मत की बात हैं आप सागर के किनारे खड़े हैं ज्वार आया न आया.........  आप न भीग पाए तो धोखा कैसा .....हहहहहहहाहा
पर अच्छे लोग भी हैं सीधे सपाट  न दुराव न छुपाव ऐसे की आश्चर्य हो  साहब ....की कौन देश से आए हो भाई......ऐसे क्यों हो आज की दुनिया मैं भी पर ऐसे ही लोगो की वजह से ये नेटवर्क चल भी रहा हैं विश्वास बढ़ता तो हैं पर घटाने वाले ज्यादा हैं यहाँ
कुछ पंक्तियाँ  याद आती  हैं इस माहोल पर

अब किसी को भी नजर आती नहीं कोई दिवार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार

इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं
आदमी या तो जमानत पर रिहा हैं या फरार

आप बच कर चल सके ऐसी कोई सूरत नहीं
रह गुज़र घेरे हुए........ मुर्दे खड़े हैं बेशुमार

दस्तको का अब किवाड़ों पर असर होगा जरूर
हर हथेली खून से तर.... ओर ज्यादा बेकरार

हालते इन्सान पर बरहम न हो अहल-ए-वतन
वो कहीं से जिंदगी भी...... माँग लायेंगे उधार 

हम बहुत कुछ सोचते हैं .......पर कहते नहीं
बोलना भी हैं मना सच बोलना तो दरकिनार

रौनक-ए-जन्नत मुझे  जरा भी   रास आई नहीं
मैं जहन्नुम मैं ही बहुत खुश था मेरे परवरदिगार

9 comments:

  1. helli
    nahi janti waha kya hua,..

    idhar waqt ke hatho majboor hu net pe ni time de pati...
    rachna to apki har achi lagti hai..par jo hua hoga acha nahi hua hoga ..lekin chalo blog pe ham padh sakte hai apko ye achi baat hai.

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  2. हरीश जी नमस्कार......
    आपके ब्लॉग पर "ऑरकुट पर अंतिम दिन" पढ़ी....ऐसे लगा जिस गुनाह का मैं चश्मदीद गवाह था उसी गुनाह को रचना और करीब से दिखा रही हो....शायद जो अनदेखा था वोह भी....वाकई एक छद्मावरण हैं .....पर मैं तब तक रहूँगा जब तक "उस"सोच को हराता नहीं.....या मेरी सोच बदलती नहीं.....

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  3. harish ji aisa kya ho gaya orkut pe
    anyway ham to aapko padh hi sakte hai hamare liye yahi bahut hai

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  4. harish ji , aapke anubhavon se purntaya sahmat hu........... isliye aajkal mai bhi aarkut par kam hi dikhta hoo. bas thoda bahut time blog par hi deta hoo. but i think all are time wasted.....

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  5. हरीश जी मैं किस छंद , किस पंक्ति में था ये तो मैं नहीं जानता ...पर आप की इस दुनिया से जो अपेक्चायें थी, वो कहीं न कहीं एक नादाँ बच्चे सी थीं ...आखिर क्या अपेक्षा रखते हैं आप इन बेचारे लोगों से जो खुद से जूझ रहे हैं .....जिन्हें पहचान की, इज्ज़त की भूख है पर वप उनके निजी जीवन से गायब है ...आखिर क्या अपेक्षा करते हैं आप इन निराश हो चुके, हार चुके लोगों से....जो सारा दिन कहीं किसी दफ्फ्तर, स्कूल , कालेग में बॉस की , अध्यापक की या प्राफेस्सर की दांत डपट, अहम् और अत्त्याचार को चुप चाप सहते हैं .... जो जहाँ है वहीं से रौब जमा रहा है..लोगों को एक जरिया मिलता है अपने आप कुछ समझ कर प्रस्तुत करने का इस बेनाम-पते किदुनिया में ..तो आखिर क्या बुरा है...न किसी से अपेक्षा रखिये न खुन्थित होकर दूर जाईये ...... समय के साथ दो -एक अच्छे लोग मिल जायेंगे

    दो पल के जीवन से इक उम्र चुरानी है,
    जिंदगी और कुछ भी नै तेरी मेरी कहानी है...

    वापस आइये सर ...कहानी आगे भी बढानी है


    हर वो वाक्य जो "आज कल की दुनिया.." से शुरू होकर " ..पहले ऐसा नहीं था " पे ख़तम होता है वो मुझे हंसा जाता है ...इतना नादाँ क्यूँ है इंसान ...हर तरेह के लोग हर युग में थें..इसका मतलब ये तो नहीं के आप ही सही हैं ...बाकी लोगों को अच्छा लगत है बुरे होकर एक बुरी दुनिया का निर्माद करने में ...लोग असहाह है ,,कमजोर हैं...बुरे कभी नहीं

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  6. ऑरकुट पर अंतिम दिन ......
    नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए , जो लोग झंडा उठाने की ताकात रखते हैं अगर वही लोग लांछनो से डरने लगेंगे तो कौन बचायेगा दुनिया को | हर तरफ तारीफ चाहने वाले लोग हैं आपकी बुराइयां तो छोडिये साहब आपकी अच्छाइयो से छिड़ने वाले लोग हैं | वहाँ कमेन्ट के हिसाब से खुद को तोला जाता है | आप वापस आइये सर आपको क्यों जाना वहाँ से | जितने लोग आपको वहाँ पढ़ सकते हैं उनका अच्चा पढ़ने का आनंद न छीने आप | कुछ तो लोग ही हैं वहाँ जिनका पढ़ना सुकून देता है | अगर कोई कुछ बोलता है तो बोलने दो उसको सर जवाब ही न दो और लोग देख लेंगे अपने आप |
    आइये सर

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  7. सखी जी शुक्रिया बहुत

    आपके यहाँ तक आने का

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  8. Mafi chahungi der se pahuchi is post tak aap bahut jyada dil se jude the orkut se tabhi to wah blog tak pahunch gaya maine aapse pahle delete kiya orkut par wah blog tak nahi pahuncha mere kyunki main usse nahi judi thi kuch logon se judi thi aur wah jadao ab bhi kayam hai yanhaa sabhi aapko wapas aane ko kah rahe hain par main to yahi kahungi janhaa tension mile wanhaa nahi jana chahiye hamari bhojpuri mein ek kahawat hai "khur se dur bhala" umeed hai iska arth samajh gaye honge rahi baat aapki kavitaon ki to ful ki khusboo bhanwaron ko aakarshit kar hi leti hai fir jo orkut par jate hain blog pahuchne mein waqt ya mehnat hi kitna lagta hai bas ek click mouse ka..........

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  9. harish bhai...aap ka yun orkut se chale jana ...
    mujhe achcha nahi laga...ek baar aapne comm chhod di thi..to aap ko awaaj de kar bula liya...ab to aapne account hi delete kar diya..ab kaha se bulau..
    aap ka ye blog mil gaya hain to aap se yahi mulakat ho jaya karegi..
    aap ka chhota bhai
    arvind

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