Sunday, January 23, 2011

गणतंत्र दिवस पर .....



आज मेरे देश में ये..... हो रहा हैं क्लेश कैसा
बह रहा हैं खून ऐसे ........जैसे बहता पानी हैं
ओर डूबते हुओ को हम बचाए तो बचाए कैसे
आपने ही भाइयों की..... सारी कारिस्तानी हैं


दस दस करके............... साठ वर्ष बीत चुके 
यही इस गणतंत्र के..... विकास की कहानी हैं
भ्रष्टाचार बलात्कार ओर.... गोली की बौछार
यहाँ वोट सबका राजा हैं ओ नोट सबकी रानी हैं

लाल रंग खून का जो ....तेरा भी हैं मेरा भी हैं
काहे की फिर दुश्मनी ओर काहे बदगुमानी हैं
मरने वाले हिन्दू हैं न ......सिख न मुसल्मा हैं
ख़त्म  हो रही जो मेरे ........देश की जवानी हैं

मन में हैं राम ओर......... मन में रहीम यारो 
मंदिर ओर मस्जिद का... सवाल तो बेमानी हैं
कुर्सी जिनकी गीता हैं ओ कुर्सी हैं कुरान जिनका
ऐसे नेताओ की बांदी .......अपनी राजधानी हैं

बेच दोगे देश को तुम ....देश के ओ ठेकेदारों 
इज्जत बची थी बस .....वो भी बिक जानी हैं
बहनोंके आँचल बिके माँका आशीर्वाद बिका
ए मेरे भगवान........ अब तेरी बारी आनी हैं

पूछो उन पड़ोसियों से आग जो लगा रहे हैं
छुप के वार करना क्या वीरों की निशानी हैं
सामने मुकाबला वो.. करके आज देख ले ये
दम हैं कितना खून में ओर कितनी रवानी हैं


सोचो पहले देश हैं ओर फिर हैं परिवार अपना
न्याय ओर सत्य की ......डगर एक बनानी हैं
कम हैं प्रताप यहाँ ............. ज्यादा जयचंद 
इस देश से गद्दारों की ये जात भी मिटानी हैं


जल रहा हैं विश्व सारा युद्ध की विभीषिका से 
रोती हुई मानवता की ....लाज भी बचानी हैं
ओर भटके न रहबर....... कट जाये भले सर
प्रेम की एक शम्म...... हर दिल में जलानी हैं


शत शत प्रणाम उन्हें ..... देश पे कुर्बान हैं जो
उन की ही राह हमें...... मुक्ति मिल जानी हैं
ये न सोचो बाद ....किस हाल होगा देश मेरा
मुड़ के देखो यहाँ......... हर शीश बलिदानी हैं


आज की ये बात नहीं ..आज का रिवाज नहीं
बरसों से मेरे............. इस देश की कहानी हैं
देश हित में जो मरा...... सिख न मुसल्मा था
वीर था शहीद था... ...वो खून हिन्दुस्तानी हैं


देखो उन शहीदों की चिताओ  के निशा न मिटे
जान भले जाये.......... ये तो एक दिन जानी हैं   
ओ माँ के आसुओं के लिए बहनों के सिन्दूर हित
आज हमें देश हित............  कसम ये खानी हैं


की. मुझे ..इश्क हैं ..अपने वतन से यारों.... मैंने जनूने इश्क में ....ये फैसला किया
मिट जाऊ अगर देश पे तो माँ से कह देना तेरे बेटे ने तेरे दूध का ये हक अदा किया








4 comments:

  1. Maast hai. antim panktiyaan to superb too good

    ReplyDelete
  2. देश के प्रति चिन्ता प्रकट करती सशक्त रचना!

    ReplyDelete
  3. हरीश जी बहुत ही विचारणीय और भाव पूर्ण प्रस्तुति. देश के प्रति चिंता स्पष्ट झलक रही है. बहुत ही अच्छा आह्वान करती सुंदर कविता. बधाई..........

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर ...गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं

    ReplyDelete