Friday, May 27, 2011

मैं प्रीत सौपता हूँ तुमको स्वीकार न हो तो कह देना


कुछ शब्द-सुमन उर अंजुरी में 
भरपूर नेह से........... लाया हूँ
दो पल तो पास तुम बैठो जरा 

मैं दूर देश से.......... आया हूँ
मैं रोज सोचता हूँ ....तुमको 

अधिकार न हो तो ,कह देना
मैं प्रीत सौपता हूँ तुमको 
स्वीकार न हो तो कह देना 

तुम चाहे न मुझसे बतियाना 

शर्माना न ........इठलाना ना
तुम द्वार से ही, लौटा देना 

मुस्काना न .....इतराना ना
मैं रोज मनाता हूँ.. तुमको 
मनुहार न हो तो.\, कह देना
मैं प्रीत सौपता हूँ तुमको स्वीकार न हो तो कह देना

कह तो दिया मत देना भले 

इन नैनों का.... संसर्ग प्रिये
न देना भले ,प्यासे मन को 

अंजुरी भर भी, अर्घ्य प्रिये
मैं रोज ही रचता हूँ, तुमको 

साकार न हो तो,, कह देना
मैं प्रीत सौपता हूँ तुमको स्वीकार न हो तो कह देना

""इन पंक्तियों मैं एक परिवर्तन के साथ भी पढ़ कर देखे  

की भाव मैं क्या परिवर्तन होता हैं ""

मैं रोज सोचता हूँ तुमको प्रतिकार न हो तो कह देना
मैं प्रीत सौपता हूँ तुमको...इन्कार न हो तो कह देना

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