सलवटे... चेहरे की दिखाते हैं ज़माने वाले
क्या क्या... इल्जाम लगते हैं ज़माने वाले
शुमार तुम भी थे गैरों की अदावत में कहीं
कल से खुश खुश सा बताते हैं ज़माने वाले
कितनी तरकीबें लड़ाई थी, तेरी आमद को
रंजिशन बारिश भी, कराते हैं ज़माने वाले
आशिकों यूं भी कभी.. बाज़ दफा होता हैं
इधर की उधर.. भी लगाते हैं ज़माने वाले
सोचने में तो कोई हर्ज नहीं.... क्या कीजे
बात.. बेबात भी बढ़ाते हैं .....ज़माने वाले
तू मुझसे दूर रहे.....बदगुमां रहने को तेरे
नाज-ओ-अंदाज उठाते हैं.... ज़माने वाले
जो था मोहसिन. उसी पे क़त्ल का शुबहा
तो रिश्ते ऐसे भी निभाते हैं. ज़माने वाले
very nice gazal...
ReplyDeleteखुबसूरत ग़ज़ल |
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