Tuesday, June 28, 2011

इस देश की रानी 'सोनपरी',


अब कौन सुने सच की सरगम,कहना ही तो दरकार हो गया
इस देश की रानी 'सोनपरी', 'मन मोहन' भ्रष्टाचार हो गया

दफ्तर क्या दफ्तरवासी,,, क्या अफ्सर और क्या चपरासी
मंत्री से ले कर संतरी तक,, सब सौ की पत्ती के अभिलाषी
हर फाइल पे रखना हैं वजन, दफ्तर का शिष्टाचार हो गया
इस देश की रानी 'सोनपरी', 'मन मोहन' भ्रष्टाचार हो गया

अस्मत लुटती यहाँ थानों में, सौ पेंच हैं रपट लिखवाने मैं
दो बैल बिके एक खेत बिका,, मुजरिम साबित करवाने मैं
देश के सिपहसलारों से ही, संविधान का बलात्कार हो गया
इस देश की रानी 'सोनपरी', 'मन मोहन' भ्रष्टाचार हो गया

हाँ अब लोकपाल कि जय होगी, उसकी भी कीमत तय होगी
कुछ नए खाते खुल जायेंगे, जब देश-लक्ष्मी स्विसमय होगी
काला धन - काली करतूते ,,,उजले चेहरों का श्रृंगार हो गया
इस देश की रानी 'सोनपरी', 'मन मोहन' भ्रष्टाचार हो गया

3 comments:

  1. इस देश के हालत और भ्रष्ट.सरकार के लिए ....सटीक शब्दों में सही वर्णन

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  2. सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति ...

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  3. यथार्थ का काव्यमय सशक्त वैचारिक प्रस्तुतिकरण...

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