निशदिन मैं तेरी आंख से आंसू सा झर गया
बस जिंदगी की चाह में,... हद से गुजर गया
कहती थी दुनिया जिसको, ...दीवानगी मेरी
थी फब्तियों मैं हर दम,.... मजबूरियां मेरी
पल भर के ही सुकून को क्या-२ न कर गया
निशदिन मैं तेरी आंख से आंसू सा झर गया
बस जिंदगी की चाह में,... हद से गुजर गया
दोनों जहाँ में जाने ..... ..किसकी तलाश थी
में खुद लिए था जिसको ....मेरी ही लाश थी
जो था जमीर वो तो.....कबका था मर गया
निशदिन में तेरी आंख से आंसू सा झर गया
बस जिंदगी की चाह में ....हद से गुजर गया
यारों मुझे यकीन हैं.... क्यों दोगे तुम सदा
हंस दोगे इस जुनून पे...... हो जाओगे जुदा
अब दूर ही चला जाऊंगा, मैं भी अगर गया
निशदिन में तेरी आंख से आंसू सा झर गया
बस जिंदगी की चाह मैं,... हद से गुजर गया
मत सोचना कि लौट के, यूं आऊंगा न कभी
आता रहूँगा याद मैं ऐसे तो जाऊंगा न कभी
क्या क्या संभालता पर, सब तो बिखर गया
निशदिन में तेरी आंख में आंसू सा झर गया
बस जिंदगी कि चाह में... हद से गुजर गया
हर बार की तरह एक खुबसूरत रचना
ReplyDelete