सहमा हूँ, कातर नहीं हूँ !
आसुओं से, तर नहीं हूँ !!
ठोकरों में, क्यों रहूँ मैं !
राह का, प्रस्तर नहीं हूँ !!
रोज रटते हो, मुझे क्यों !
प्रश्न का, उत्तर नहीं हूँ !!
खुद लहूँ में,, गर्त हैं जो !
दोगला, अस्तर नहीं हूँ !!
चीर दे जो,,, पृष्ठ पीछे !
छद्म वो,, नश्तर नहीं हूँ !!
मर गया हैं, तुममे इमां !
तुमसे तो, बदतर नहीं हूँ !!
आसुओं से, तर नहीं हूँ !!
ठोकरों में, क्यों रहूँ मैं !
राह का, प्रस्तर नहीं हूँ !!
रोज रटते हो, मुझे क्यों !
प्रश्न का, उत्तर नहीं हूँ !!
खुद लहूँ में,, गर्त हैं जो !
दोगला, अस्तर नहीं हूँ !!
चीर दे जो,,, पृष्ठ पीछे !
छद्म वो,, नश्तर नहीं हूँ !!
मर गया हैं, तुममे इमां !
तुमसे तो, बदतर नहीं हूँ !!
बहुत खूबसूरत ...अच्छी लगी गज़ल
ReplyDeletebhut hi acchi gazal...
ReplyDeleteछोटी बहर की शानदार गजल।
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विलुप्त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?