आज मातृ दिवस हैं पर मेरे लिए तो हर दिन ही माँ का दिया हुआ हैं सो कुछ पंक्तियाँ उनको समर्पित करता हूँ .
मेरे छोटे से घर से ही मेरी दुनियां अयाँ होती हैं
मैं इक कमरे मैं होता हूँ पूरे घर मैं माँ होती हैं
मेरी दुश्वारियां भी उसकी दुआओं से डरती हैं
मेरा हर दर्द सो जाता हैं तब जा के माँ सोती हैं
सुब्ह उठते ही सूरज टांक देती हैं छतभर तक
धुधलका हो नहीं पाता कि ..तारे से पिरोती हैं
बच्चों सा नहलाती हैं अब भी धूप मैं अक्सर
संचित पुन्य से घिस कर मेरे पापों को धोती हैं
ग़मों से टूट कर रोते हुए तो.... देखा हैं लोगो को
वो खुश हो तबभी रोती हैं ओ गुस्से मेंभी रोती हैं
वो उसको याद हैं अब भी.प्रसव की वेदना शायद
वो घर के सामने क्यारी मैं कुछ सपने से बोती हैं
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteगहन भावों का सहज सम्प्रेषण .....हर पंक्ति प्रभावित करती है....
ReplyDeleteउसकी दुआओं में वो बात है की दुश्वारियां डरती हैं
ReplyDeleteमाँ पूरी ज़िन्दगी कवच बन साथ चलती है ....
bahut hi sundar bhav "MAA" Ke liye
ReplyDelete"Maa" duniya ka sabse anmol tohfa he!
अंतिम शेर ने निस्तब्ध कर दिया ... लाजवाब ग़ज़ल है ...
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteमाँ की महिमा का कितना सुन्दर चिन्तन… दिल छूती पंक्तियाँ. बहुत प्यारी कविता है। धन्यवाद
ReplyDeleteसहज.... सशक्त.... सार्थक....रचना....
ReplyDeleteमातृदिवस पर माँ को सादर नमन.....
बहुत बहुत शुक्रिया अप सभी का अपना समय और रचना को समर्थन देने के लिए
ReplyDeleteआभार सभी का