" शाम सवेरे तेरे तट पर नित्य जन्म लेता हूँ
शाम सवेरे तेरे तट पर ....शब्द बीज बोता हूँ
कोटि काल से कोटि कंठ जब तेरा नाम हैं लेते
मैं भी कुछ शब्द कलम से युग महिमा कहता हूँ "
दोस्तों
आज पतितपावनी..सिद्धिदात्री,पापहरनी ,सदानीरा, मकरवाहिनी,
ब्रह्मकमंडलवासिनी,सुरसरी,पितृ तारिणी ,माँ गंगा का उद्भव दिवस यानि
प्रकटोत्सव दिवस हैं ...आज ही के दिन भागीरथी प्रयास से माँ का आगमन इस
भूमंडल पर हुआ था.एक गीत की कुछ पंक्तियाँ माँ के चरणों मैं रखता हूँ ...
क्षीर पावन स्वर्ग से आंचल मैं भर कर लाइ हैं!
ये धारा सीधे ही चल कर शिव- जटा से आई हैं !!
भागीरथ ने तप किया तब पुन्य संचित हो गए!
वेग को थमा था सर पर शिव भी गंगित हो गए!
धन्य ऐसी भेंट निर्मल.. तुमने जो भिजवाई हैं !
ये धारा सीधे ही चल कर शिव- जटा से आई हैं !!
देखता हूँ रोज तुमको.. ध्यान मैं धर लूं जरा!
पूजता हूँ रोज तुमको ...आचमन कर लूं जरा!
जाने कितने पुन्य थे जो.. देह तुम तक आई हैं!
ये धारा सीधे ही चल कर शिव- जटा से आई हैं!!
माँ तुम्हारे आस पर यह देश सिंचित हो रहा !
पाप धो देती हो सबके .. पुन्य अर्जित हो रहा !
मोक्ष दायिनी इस धरा पर.. कष्ट हरने आई हैं!
ये धारा सीधे ही चल कर शिव- जटा से आई हैं!!
क्षीर पावन स्वर्ग से आंचल मैं भर कर लाइ हैं!
ये धारा सीधे ही चल कर शिव- जटा से आई हैं !!
आध्यात्म का प्रबल रूप
ReplyDeleteभक्तिरस से परिपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमाँ गंगा के प्रति आपके अगाध प्रेम और श्रधा को दर्शाती है आपकी यह रचना, गंगा की कल कल करती पावन धारा की विशेषताओं को बखूबी शब्दों में पिरोया है आपने
ReplyDeleteकविता का शीर्षक "क्षीर पावन स्वर्ग से आँचल में भर कर लाई है" भी अत्यंत सारगर्भित है, इस एक पंक्ति में ही मानो पूरी गंगा सिमट कर आ गई हो बिलकुल उसी तरह जिस तरह ब्रह्मा के कमंडल में समा गई थी और फिर धीरे धीरे हर पंक्ति में उसका रूप और वृहत रूप में सामने आता गया ज्यूँ शिव जटा से निकली एक धार धरा पर आकर इतने विशाल जनसमूह को तृप्त करती है | इस रचना ने वाकई अपनी पावनता से मन को तृप्त कर दिया |
bahut acchi bhaktimay rachna aapki..
ReplyDeletejai ganga ji....