कभी पुष्प तुम्हारे अधरों पर,
खिल जाये तो मुस्काना तुम !
कभी कंजई आंखे शोख लगें ,
तो इतराना... शरमाना तुम !
जो पूछे कोई ये, कैसे हुआ ,
किसने हैं ये मोहक रूप रचा !
मेरा नाम न लेना.. कह देना.. मौसम की ठिठोली थी ये जरा !!
कभी पुष्प तुम्हारे अधरों पर, .......
जब तेज हवा..... वासंती हो,
ओ क्षितिज जरा सतरंगी हो!
तब बनना सवरना इठलाना ,
जब इन्द्रधनुष भी, संगी हो !
जो पूछे कोई ये, रंग हैं क्या.
चटकीला सा ये संग हैं क्या !
मेरा नाम न लेना.. कह देना.. गुजरी हुई होली थी ये जरा !!
कभी पुष्प तुम्हारे अधरों पर, ......
कोई गीत बिसरते चेहरों पर,
आ जाये सुलगते, अधरों पर!
गालेना किसीको सोच के तुम,
आहिस्ता गुजरते, प्रहरों पर !
जो पूछे कोई ये, राग हैं क्या,
सांसों का ये आलाप हैं क्या !
मेरा नाम न लेना.. कह देना.. खुद से ही यूंही बोली थी ये जरा !!
कभी पुष्प तुम्हारे अधरों पर,......
कभी आओ यूंही जो बागों में ,
बन्ध प्रीत के कच्चे धागों में !
गर मैं न वहां पर मिल पाऊँ ,
आऊंगा सलोने... ख्वाबों में !
जो पूछे कोई ये, बात हैं क्या ,
गहरा सा, उच्छ्वास हैं क्या !
मेरा नाम न लेना.. कह देना..यादों की रंगोली थी ये जरा !!
कभी पुष्प तुम्हारे अधरों पर,......
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Harish Bhatt
वाह ॥ बहुत खूबसूरत गीत
ReplyDeleteprem ke saare rang udel diye es kanvita mein bahut sundar..
ReplyDeleteसुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteयादों का बिम्ब लिए बहुत सुंदर भाव.....
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