सलीके से मुझे वो आज भी, पहचान लेती है !
मैं जब घर थक के आता हूँ हथेली थाम लेती है !!
न पूछा आज तक मैंने, न उसने ही कहा कुछ !
जुबां खामोश रहती है,, निगाहें जान लेती है !!
कभी जब ख़फा होती, सताने के लिए मुझको !
न रह पाती ज़ुदा मुझसे, यूंही बस मान लेती है !!
में आगे जा नहीं पाता, यहीं तक मेरी 'सीमा' हैं !
वो नजरों में रखती हैं,, जतन से काम लेती है !!
वो उसके गेसुओं में रात,, गहराती हैं जब भी !
मेरी हर आवारगी भी तो, वहीँ आराम लेती है !!
कोई जब पूछता हैं जिंदगी भर का सिला क्या हैं !
मैं उसका नाम लेता हूँ,,, वो मेरा नाम लेती है !!
यही बस जिक्र है उसका, यही पहचान है उसकी !
मेरी नज्में उसी का नाम, सुब्ह-ओ-शाम लेती है !!
हरीश भट्ट, हरिद्वार
सलीके से मुझे वो आज भी पहचान लेती हैं
ReplyDeleteमें घर थक के आता हूँ हथेली थाम लेती हैं
कोई जब पूछता हैं जिंदगी का सिला क्या हैं
में उसका नाम लेता हूँ,, वो मेरा नाम लेती हैं....प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति........
डबडबाई आँखों से न मुझे बहलाओ
ReplyDeleteटूटते तारे का दर्द मैं भी जानती हूँ |...अनु
बेहद खुबसूरत रचना है सर, बहुत प्यारी अभिव्यक्ति बस यूँ समझ लीजिये इस अभिव्यक्ति के लिए जितनी भी तारीफ़ कि जाए सब फीके हीं नज़र आयेंगे
ReplyDeleteसलीके से मुझे वो आज भी पहचान लेती है
मैं घर थक के आता हूँ हथेली थाम लेती है ...............साधारण होते हुए भी विशिष्ट है ये एहसास
कोई जब पूछता है जिन्दगी का सिला क्या है
मैं उसका नाम लेता हूँ वो मेरा नाम लेती है ..............बहुत हीं प्यारी पंक्तियाँ
प्रेम का पावन भाव.... एक दूजे का साथ और सहारा ....
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति