पलकों का
उनींदापन
अब थम जायेगा
शायद,
सीने की हरारतों को
विराम भी !
छट जायेगा
वक़्त बेवक्त की उम्मीदों
का धुधलका ,
निकल जायेगा
वर्षों से पसरा
अनमना सा गुबार !
कम हो जाएगी
हथेलियों की तपिश ,
विस्मृत नहीं कर पायेगी
तारों के टूटने की झलक !
डूब जायेगा
झूठी तसल्लियाँ
देने मैं माहिर
सूरज ,
हमेशा के लिए
देवदार के पेड़ों के पीछे !
अब न भरमायेगा
क्षितिज का
वो सम्मोहन ,
........
आज
मैंने तुम्हारा
आंखरी
ख़त
जला जो दिया हैं
........
अब उस
दराज में
खाली लिफाफे सा
ठहरा हुआ सा हूँ
बिना
पता लिखा हुआ
मैं..!!
--
Harish Bhatt
उनींदापन
अब थम जायेगा
शायद,
सीने की हरारतों को
विराम भी !
छट जायेगा
वक़्त बेवक्त की उम्मीदों
का धुधलका ,
निकल जायेगा
वर्षों से पसरा
अनमना सा गुबार !
कम हो जाएगी
हथेलियों की तपिश ,
विस्मृत नहीं कर पायेगी
तारों के टूटने की झलक !
डूब जायेगा
झूठी तसल्लियाँ
देने मैं माहिर
सूरज ,
हमेशा के लिए
देवदार के पेड़ों के पीछे !
अब न भरमायेगा
क्षितिज का
वो सम्मोहन ,
........
आज
मैंने तुम्हारा
आंखरी
ख़त
जला जो दिया हैं
........
अब उस
दराज में
खाली लिफाफे सा
ठहरा हुआ सा हूँ
बिना
पता लिखा हुआ
मैं..!!
--
Harish Bhatt
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
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