Friday, March 25, 2011

हादसा


हादसा,, हर पल रहा हैं !
साथ ही तो, चल रहा हैं !!

धूप सर तक आ रही हैं !
मोम जैसा गल रहा हैं !!

आज भी गुजरा हैं, ऐसे !
जैसे पिछला कल रहा हैं !!

कश्तियाँ लौटेंगी अब तो !!
फिर से सूरज ढल रहा हैं !!

दोस्तों मुह फेर कर वो  !
हाथ ही तो, मल रहा हैं !!

दफ्न करदो अबतो यारों !
अब ना कोई, हल रहा हैं !










3 comments:

  1. बहुत खूब ...सच तो है हर पल कोई न कोई घटना तो साथ ही चलती रहती है ...

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  2. छोटी छोटी पंक्तियों में लिखी यह रचना बहुत खूब है हरीश जी
    पर ये तश्वीर ................हहहहहहहाहा

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  3. बहुत खूब लिखा है आपने
    दिल को पढने की भाषा जानते है आप ...
    कही ऐसा तो नहीं की कोई चुक हो गई हो
    जिसे आप सही से पढ़ नहीं पाये

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