""कविता""...... कविता उस पहाड़ी झरने के पानी की तरह से हैं निष्कपट,निश्छल,पारदर्शी, जिसमे से झाँक कर कवि की भावनात्मकताए देखी जा सकती हैं कविता,गीत या ग़ज़ल एक मनः स्थिति हैं भाव का रूपांतरण हैं एक अलग ही दृश्यांतरण हैं कभी कभी तो इस संसार से परे एक संसार रच लेता हैं कवि रचना तो स्वयंभू हैं स्वरचित.. ये तो ईश्वरीय प्रबलता हैं जो उसके मस्तिस्क की गहराइयों मैं जन्म लेती हैं हृदय के तारों को झंकृत करती हुई मुख के सप्त सुरों पर अवरोहण करती हुई कलम के माध्यम से उभर आती हैं वरकों पर
बहुत खूब ...सच तो है हर पल कोई न कोई घटना तो साथ ही चलती रहती है ...
ReplyDeleteछोटी छोटी पंक्तियों में लिखी यह रचना बहुत खूब है हरीश जी
ReplyDeleteपर ये तश्वीर ................हहहहहहहाहा
बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteदिल को पढने की भाषा जानते है आप ...
कही ऐसा तो नहीं की कोई चुक हो गई हो
जिसे आप सही से पढ़ नहीं पाये