""कविता""......
कविता उस पहाड़ी झरने के पानी की तरह से हैं निष्कपट,निश्छल,पारदर्शी, जिसमे से झाँक कर कवि की भावनात्मकताए देखी जा सकती हैं
कविता,गीत या ग़ज़ल एक मनः स्थिति हैं भाव का रूपांतरण हैं एक अलग ही दृश्यांतरण हैं कभी कभी तो इस संसार से परे एक संसार रच लेता हैं कवि
रचना तो स्वयंभू हैं स्वरचित.. ये तो ईश्वरीय प्रबलता हैं जो उसके मस्तिस्क की गहराइयों मैं जन्म लेती हैं हृदय के तारों को झंकृत करती हुई मुख के सप्त सुरों पर अवरोहण करती हुई कलम के माध्यम से उभर आती हैं वरकों पर
Sunday, December 19, 2010
आभावों मैं जीने वालों
आभावों मैं जीने वालों क्यों इतना पछताते हों क्यों ओरों की चकाचौध मैं अपनी रात छुपाते हो आभावों मैं कौन नही हैं कौन यहाँ परिपूर्ण कहों मानव हो ओर मानवता का ह्रास हुआ बतलाते हों
Bahut khub sir. bilkul sahi likha na koi purn hai na santust har kisi k apne apne abhawon k kisse hain
ReplyDelete@ हरीश जी,
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा .......... बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति.
हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति
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