Friday, December 17, 2010

हाशिये...........


कुछ हाशिये उग आये हैं ....मेरे उनके दरमीयां
यारो ने  जाने कितनी दूर ,बसा ली हैं बस्तियां


थक चुके हैं पैर ओ मंजिल के निशा कुछ भी नहीं
कर नहीं पाऊँगा सर.... लगता हैं   अब ये दूरियां


मुद्दते गुजरी हैं उनकी अब तो ..शक्ल भी देखे हुवे
जब भी गुजरा उस गली ,बंद थी उनकी खिड़कियाँ


यूं तो दिल की बात खुल कर लब पे वो लाते नहीं
फिर भी पीछे से मेरे ....कसते तो हैं वो फब्तियां


कौन जाने कोन सी ......दुनिया मैं होंगे लोग वो
लौट कर आती नहीं साहिल पे जिनकी कश्तियाँ


कल ही अखबारों मैं पड़ के हमको मालूम हो सका
गुमशुदा मुद्दत से हैं...... चेहरे से उनकी शोखियाँ


उनके दिल की आग जाने क्या कहर ढायेगी अब
वो जो तिनको से.... बना बेठे हैं अपना आशियाँ

कहकहो मैं रहने वाले..... क्या सुनेगे ए हरीश
तेरे शेरो की फिजा मैं... जब्त हैं जो सिसकियाँ

1 comment:

  1. ek katu satya aaj sabhi ek dusre se juda ho gaye hain sirf gharon nahi dilon k beech bhi deewaren khadi ho chuki hain

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