साहिबान एक नई रचना के साथ रूबरू हुआ हूँ "एक चुटकी गुलाल अच्छा हैं..."
हिज्र हो या विसाल अच्छा हैं
आशिकी को ये साल, अच्छा हैं
तुम्हारे कुर्ते पे खूब ज़चता हैं
ये फ़िरोज़ी रुमाल, अच्छा हैं
सरहदों के हालात मत पूछो
इससे घर का बबाल,अच्छा हैं
गीले रंगों से वो लरज़ते हैं
एक चुटकी गुलाल,अच्छा हैं
बाद बारिश के धूप बिखरी हैं
उसपे तेरा जमाल, अच्छा हैं
करके नेकी क्यों घर मैं रक्खी हैं
इसको दरिया मैं डाल,अच्छा हैं
माँ ने फिर खीर बनाई होगी
मुह मैं आया हैं बाल,अच्छा हैं
हिज्र हो या विसाल अच्छा हैं
आशिकी को ये साल, अच्छा हैं
तुम्हारे कुर्ते पे खूब ज़चता हैं
ये फ़िरोज़ी रुमाल, अच्छा हैं
सरहदों के हालात मत पूछो
इससे घर का बबाल,अच्छा हैं
गीले रंगों से वो लरज़ते हैं
एक चुटकी गुलाल,अच्छा हैं
बाद बारिश के धूप बिखरी हैं
उसपे तेरा जमाल, अच्छा हैं
करके नेकी क्यों घर मैं रक्खी हैं
इसको दरिया मैं डाल,अच्छा हैं
माँ ने फिर खीर बनाई होगी
मुह मैं आया हैं बाल,अच्छा हैं
No comments:
Post a Comment