Thursday, December 23, 2010

कशमकश -रिश्तों की

.........."नहीं दीपिका इस जिन्दगी से अब कुछ नहीं चाहिए मुझे" ........
सतीश ने झुझलाकर दीपिका को कहा ...."कुछ नहीं हो सकेगा मेरा न किसी मुकाम पे ले जा पाउँगा खुद को"
"नहीं सतीश.... तुम मेरे दोस्त हो न ...मेरी तरफ देखों.... मैं तुम्हे इस तरह टूटते नहीं देख सकती तुम मैं क़ाबलियत हैं ,कोशिश की जरूरत हैं यूं हार मत मानो अभी से"""भर्राए गले से कहा दीपिका ने
""'दीपिका'..मैं कभी कामयाब हो ही नहीं पाऊँगा ..क्या क्या सपने देखे थे मैंने बचपन से ही एक बड़ा सा स्टेज ...सामने लोगो का हजूम ओटोग्राफ लेने के लिए भागते लोग ...चकाचौध से भरपूर दुनिया.... लेकिन.. सब ख़त्म ,,सब ख़त्म मैं गा ही नहीं पा रहा हूँ दो दिन से"" .......सतीश के मुह से शब्द निकल नहीं रहे हो जैसे 
दीपिका की आखे नम हो आई .......
दीपिका और सतीश एक प्रोग्राम के सिलसिले मैं आगरा मैं मिले थे ताज महोत्सव मैं दीपिका अपने शहर देहरादून से अपने राज्य की नुमायन्दगी पर थी और सतीश ...बचपन से ही सिंगर बनने का ख्वाब दिल मैं लिए आया था महोत्सव की जादूगरी को देखने, वही सतीश ने दीपिका के गाने की तारीफ की और अपने मन की ख्वाहिश बयां की ,,दीपिका ने भी उसका हौसला बढ़ाते हुए उसकी मदद करने का वायदा किया था

और आज चार महीने बाद ये सहानुभूति दोस्ती मैं बदल चुकी थी ...एक अच्छी आवाज होते हुए भी सतीश मैं आत्मविश्वास की कमी थी वह जल्दी टूट जाता था और फिर परिवार की समस्याए भी तो मुह बाए खड़ी थी . दीपिका ने अपनी पहुच से कुछ अछे प्रोग्राम मैं सतीश को भी चांस दिलवा दिया था पर आगे तो उसे ही बढ़ना था

.."दीपिका आज कल तुम रहती कहाँ हो भाई.... तुम्हारे प्रोग्राम तो आजकल चल नहीं रहे हैं कहीं... फिर भी तुम इतनी व्यस्त हो की बच्चों की अभिवाहक मीटिंग मैं जाने का भी टाइम नहीं मिला" ...राजेश ने देर से घर पहुची दीपिका से कुछ तल्खी से पूछा था ......"'वो मैं अपनी एक रेकॉर्डिंग के सिलसिले मैं निर्देशक साहब के साथ थी"" '...झूठ बोल गयी थी दीपिका अपने पति से...........
कैसे कहती की वो सतीश को सांत्वना देने उसके साथ थी........
...........""देखो दीपिका तुम्हारा रचनात्मक जीवन तुम्हारे साथ हैं लेकिन मैं यह कभी नहीं चाहूँगा की तुम अपने शौक के लिए परिवार की जिम्मेदारियों को तिलांजलि दे दो.. और तुम्हारे ये प्रोग्राम रिहार्सल्स क्या रेस्टोरेंटों मैं होने लगे हैं आजकल.... कल अपने त्रिपाठी जी ने बताया की तुम मिडवे रेस्तरां मैं बैठी थी किसी के साथ .....
 बहुत घटिया सा मुह  बनाया था उसने  """यदि तुम इन्हे आपस मैं व्यवस्थित नहीं कर पा रही होतो घर मैं बेठों यूं भी बाहर लोगो से मिलना जुलना मुझे पसंद नहीं"" ....राजेश ने उसे समझाते हुए अपना फेसला सुना दिया था
एक नश्तर सा उतर गया दीपिका के सीने मैं .....इसी जद्दोजहद मैं दो बार फ़ोन काटा था उसने सतीश का ...
अजीब कशमकश थी दीपिका के जहन मैं...सतीश....राजेश.....परिवार.......और उसका करियर सब एक साथ घूम गया था ...आश्चर्य की सतीश का नाम पता नहीं क्यों बार बार आ रहा था इन सबके बीच ...जोर से सर झटक दिया था उसने और चल दी रसोई की तरफ .............
'कैसी हो दीपिका आज बहुत दिन बाद मिली हो अब तो फ़ोन भी नहीं उठाती तुम मेरा ....सुनो मुझे रत्नाकर साहब ने अपने ग्रुप मैं गाने का मौका दिया हैं ..बहुत अछे इन्सान हैं रत्नाकर साहब कई अच्छी फिल्म्स की हैं उन्होंने पता नहीं उन्हें मेरी आवाज कैसे पसंद आ गयी.""....सतीश ने चहक कर कहा
फीकी सी मुस्कराहट थी दीपिका के चहरे पे ....'तुम्हारा प्रयास हैं सतीश तुम्हारी मेहनत रंग ला रही हैं कहा था दीपिका ने '
न बता पाई की रत्नाकर जी को सतीश की सिफारिश के लिए क्या कीमत चुकाई थी उसने
........"".सुनो सतीश तुम्हारी मुराद अब पूरी होने लगी हैं अब तुम्हे मेरी जरूरत नहीं प्लीज मुझे फ़ोन मत करा करों"" ..सपाट कह गयी थी दीपिका
''''....नहीं दीपिका अब तो कहने के दिन आये हैं अगर आज मुझे कुछ हासिल हैं तो तुम्हारी ही कोशिश हैं नहीं तो मैं तो टूट ही चूका था तुम राह न दिखाती तो शायद मैं कभी गा ही न पाता तुम मेरी जरूरत हो दीपिका मेरी प्रेरणा तुम्हे कैसे न शामिल करता अपनी ख़ुशी मैं....'' सतीश उत्तेजित सा था कुछ
""बस सतीश मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूँ तुम्हारा साथ तुम्हारे जजबात कोई नहीं समझता वहां ...मैं तो आखरी बार कहने आई हूँ की शायद अब मैं मिल न पाऊँ""
झक्क पढ़ गया था  था सतीश का चेहरा कितने अरमान थे उसके दिल मैं ....सोचा था उसने की आज तो अपने दिल की बात कह ही देगा वह दीपिका से .....
....''ये क्या कह रही हो दीप मैं...मैं....तो ........नहीं दीपिका मैं मर जाऊंगा .........मैं तो.....तुम्हे........अपना बनाना चाहता हूँ...........
..........मैं शादीशुदा हूँ सतीश तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया......... बिदक गई थी दीपिका .....तुम....तुमने मेरी सहानुभूति को कुछ और समझा ........
""तो तुमने ...क्या जरूरत थी ..तुम्हे.....मेरी जिंदगी मैं आने की.....वो बाते.....हे ईश्वर."".....सतीश फट पड़ा था ............व्यर्थ के तर्क कुतर्क........बेमतलब वाद विवाद ........अंतहीन कहासुनी..........

दो माह हो गए राजेश अब दीपिका के साथ नहीं रहता हैं कहीं हल्द्वानी ट्रान्सफर करवा लिया हैं उसने अलग जो रहना था उसे रोज रोज त्रिपाठी जी की जासूसी बरगला रही थी उसे
और सतीश ...एक नई फिल्म कर रहा हैं वह ........
.दीपिका स्कूल से बच्चों को घर लाते हुए ...सोच रही हैं कैसे कैसे मरहले आते हैं जीवन मैं......राजेश हो या सतीश रिश्तों की गर्माहट कम हो गई हैं सर्द हवा के साथ
क्या गलत किया था उसने घर मैं बैठ के सोचती हैं जब. तो जवाब नहीं मिलता कुछ भी

4 comments:

  1. हरीश जी , बहुत ही सुंदर कहानी......रिश्तों के कशमकश में फंसी दीपिका कि कहानी को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने
    सृजन शिखर पर -- इंतजार

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  2. कहानी को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने

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