""कविता""......
कविता उस पहाड़ी झरने के पानी की तरह से हैं निष्कपट,निश्छल,पारदर्शी, जिसमे से झाँक कर कवि की भावनात्मकताए देखी जा सकती हैं
कविता,गीत या ग़ज़ल एक मनः स्थिति हैं भाव का रूपांतरण हैं एक अलग ही दृश्यांतरण हैं कभी कभी तो इस संसार से परे एक संसार रच लेता हैं कवि
रचना तो स्वयंभू हैं स्वरचित.. ये तो ईश्वरीय प्रबलता हैं जो उसके मस्तिस्क की गहराइयों मैं जन्म लेती हैं हृदय के तारों को झंकृत करती हुई मुख के सप्त सुरों पर अवरोहण करती हुई कलम के माध्यम से उभर आती हैं वरकों पर
Monday, December 20, 2010
पतंजलि योग पीठ
योग पीठ के द्रश्य :
1। योग पीठ का मुख्यद्वार
2।योगपीठकामुख्य भवन
२। अन्नपूर्ण भवन - शुद्ध भोजन शाला
३। ॐ का सुंदर द्रश्य
४। सुंदर बगीचों का आनंद लेते हुए मरीज
woooow kitna sundar hai sab
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