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ये नावाज़िस मेरे खुदा क्या हैं
सर पे इल्जाम भी तो ले लेते
एसे मरने से, फायदा क्या हैं
उसके चेहरे पे, साफ गोई हैं
कौन जाने ये माजरा क्या हैं
साफ जाहिर हैं इश्क हैं तुमको
बज्म मैं फिर ये मुद्दआ क्या हैं
वक़्त ने भी,, तो बेवफाई की
तू भी कह दे तेरी रज़ा क्या हैं
मैं भी अंदोह-ए-वफ़ा से, छूटूं
पहले ये जान लूं जफ़ा क्या हैं
कैसे कह दूं की, लौट आऊँगा
बद्गुमानों का वायदा क्या हैं
interesting
ReplyDeleteमैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
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