Tuesday, December 14, 2010

घर नदी के मुहाने आ गये....


जबसे मौसम सुहाने आ गये
जख्म ताज़ा था दिखाने आ गये!

यहाँ रंगीनियों का मौका था
तुम कहाँ गम सुनाने आ गये!

बाद मुद्दत मेरा ख्याल आया
छत पे कपड़े सुखाने आ गये!

तुमने रोशन किया किसी घर को
मेरे कमरो मैं जाले आ गये!!

मेरी आँखो मैं गर्मी इतनी बड़ी
उनके पाओं मैं छाले आ गये!

गाँव मैं अबकी इतनी बारिश हैं
घर नदी के मुहाने आ गये!!

आइनो को न रोज़ कोसो तुम
रुख़ पे फिर से ये दाने आ गये!

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