Monday, December 20, 2010

हरिद्वार को पार कर वो


हरिद्वार को पार कर वो
विश्व द्वार के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
 हर रोग विश्व का हार गया 

घनघोर तपस्वी ऋषियों की
अनमोल धरोहर थी ये जिसे
निस्वार्थ भाव से योगी इक
आरोग्य सभी पर वार गया
हरिद्वार को पार कर वो
विश्व द्वार के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
 हर रोग विश्व का हार गया

जब स्वास कंठ मैं खीच कर
हुंकार  ओम हो जाते हैं
जब साधक के विश्वास योग पर
चरम व्योम तक जाते हैं
जब ब्रह्म काल की बेला में
ये यज्य  योग का होता हैं
तब प्राण वायु की अग्नि में
सब रोग होम हो जाते हैं
मैं शक्तिवान  सामर्थ्यवान
उन्माद सभी को मार गया
हरिद्वार को पार कर
वो विश्व द्वार  के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
 हर रोग विश्व का हार गया

बहुतेरों ने निर्बुद्धि से
कर विरोध के लहराए
बहुतेरों ने इस योगी पर
प्रस्तर विरोध  के बरसाए                               
पर चट्टान सरीखा दृढ प्रतिज्ञ
वह नांद ओम  सा खड़ा रहा
ब्रह्मास्त्र योग का लिए हुए
वो सहस्र बाहु सा अड़ा  रहा
भीष्म सरीखे कन्धों पर
वो  भार देश का सार गया
हरिद्वार को पार कर वो
विश्व द्वार के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
 हर रोग विश्व का हार गया

2 comments:

  1. हरीश जी सार्थक प्रस्तुति...ॐ के महत्व को बखूबी बयां किया गया है।

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  2. aapki to lekhni hi mirali hai sir. jo likhte ho likhte nahi ek chitr khinch dete ho. pathak ko apni manah sthiti tak khinch late ho aap.
    Hats off to u sir

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