हरिद्वार को पार कर वो
विश्व द्वार के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
हर रोग विश्व का हार गया
घनघोर तपस्वी ऋषियों की
अनमोल धरोहर थी ये जिसे
निस्वार्थ भाव से योगी इक
आरोग्य सभी पर वार गया
हरिद्वार को पार कर वो
विश्व द्वार के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
हर रोग विश्व का हार गया
जब स्वास कंठ मैं खीच कर
हुंकार ओम हो जाते हैं
जब साधक के विश्वास योग पर
चरम व्योम तक जाते हैं
जब ब्रह्म काल की बेला में
ये यज्य योग का होता हैं
तब प्राण वायु की अग्नि में
सब रोग होम हो जाते हैं
मैं शक्तिवान सामर्थ्यवान
उन्माद सभी को मार गया
हरिद्वार को पार कर
वो विश्व द्वार के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
हर रोग विश्व का हार गया
बहुतेरों ने निर्बुद्धि से
कर विरोध के लहराए
बहुतेरों ने इस योगी पर
प्रस्तर विरोध के बरसाए
पर चट्टान सरीखा दृढ प्रतिज्ञ
वह नांद ओम सा खड़ा रहा
ब्रह्मास्त्र योग का लिए हुए
वो सहस्र बाहु सा अड़ा रहा
भीष्म सरीखे कन्धों पर
वो भार देश का सार गया
हरिद्वार को पार कर वो
विश्व द्वार के पार गया
आश्चर्य श्वाश के साधक से
हर रोग विश्व का हार गया
हरीश जी सार्थक प्रस्तुति...ॐ के महत्व को बखूबी बयां किया गया है।
ReplyDeleteaapki to lekhni hi mirali hai sir. jo likhte ho likhte nahi ek chitr khinch dete ho. pathak ko apni manah sthiti tak khinch late ho aap.
ReplyDeleteHats off to u sir