राधा-कान्हा संवाद
राधा:-
कान्हा रूठी हुई हूँ .....में तुमसे !
देखो रंग न मुझको ..लगा देना !!
मुझे देख के छेड़ेंगी ....सखियाँ !
मेरी चूनर को ना ....भीगा देना !!
तुम रसिया हो, रंग रसिया हो !
इन गोपिन के मन बसिया हो !!
पर मुझसे जरा तुम.... दूर रहो !
सब ग्वालन को भी बता देना !!
कान्हा :-
क्यों दूर भागती .....हो मुझसे !
सखी क्यों यूं रूठती हो मुझझे !!
हम बचपन के हैं ..सखा संगी !
क्यों मुख यूं मोड़ती हो मुझसे !!
ये गोपियाँ छेड़ती मुझको भी !
तुम चाहो ईन्हें तो बता देना !!
राधा सुनलो जरा ये बात मेरी !
मुझे ह्रदय से मत बिसरा देना !!
राधा :
तुम्हें जानती हूँ मैं..बचपन से !
तुम मायावी हो ...छुटपन से !!
माखन सी वाणी में ...उलझी !
कहीं टूट न जाऊं मैं .. छन से !!
चाहे गोपियों के. रसराज रहो !
पर मुझको कभी न दगा देना !!
कान्हा रूठी हुई हूँ ...मैं तुमसे !
देखो रंग न मुझको लगा देना !!
कान्हा :-
सुनो श्याम तो बस हैं राधे का !
मुझे काम नहीं हैं जियादे का !!
बस तुमसे ही ...खेलूँगा होली !
तत्पर हूँ अपने .......वादे का !!
चहुँ और हैं फाग हुलारे पर !
तकरार न कर तू चौबारे पर !!
ये रंग बरसने दे .....खुद पर !
तू मुझ पर भी...बरसा देना !!
राधा :-
मोहे लाल गुलाल सुहाए ना !
हरियल अबीर भी भाये ना !!
रंगना हो तो प्रीत के रंग रगों !
जो प्राण जाय ..पर जाये ना !!
मुझे श्याम रंग ही.. भाता हैं !
इसी रंग से अब तो नाता हैं !!
राधा श्याम के रंग में रंग गई !
चाहे दुनिया को बतला देना !!
कहाँ तुमसे भला अब रूठी हूँ
लो रंग लो ......सामने बैठी हूँ .....
हरीश भट्ट
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