Tuesday, May 29, 2018

बत्तियां गुल हो चुकी

एक पुरानी तरही ग़ज़ल...

बत्तियां गुल हो चुकी, सड़कें पुरानी हो गईं! 
अब तो रातें इस शहर की, जाफरानी हो गईं !!

सोचता था ख़त लिखूं पर, सामने वो मिल गए !
जिनको लिखना था वो सब बातें, ज़ुबानी हो गईं !!

यूं तो मुझको टोकता रहता था, ये मेरा जमीर !
ख्वाहिशों  को पर लगे तो, आसमानी हो गईं !!

कल तलक जो उंगलियों चलती थे मेरे साथ साथ !  
बेटीयाँ वो देखिये कब की, सयानी हो गईं  !!

इश्क की पेचीदगी  मैं, क्या सिखाता रात भर !
आँखों से ही  बातों की सब  तर्ज़ुमानी हो गईं !!

लज्जतें गुलकारियाँ, उनके बदन के नक्श-ए-पा !
बस इसी हसरत में गुम, शामें सुहानी हो गईं !!

उनकी आँखों में अजब बेगानियत थी आज तक !
जब पुराने ख़त खुले तो, पानी पानी हो गईं !!

हरीश भट्ट

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