Tuesday, May 29, 2018

चॉकलेट डे

नमस्कार उद्'घोष
एक कहानी ...
चौकलेट डे ...

मानव अपने मन में उठ रहे ज्वार भाटे को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा था दो दिन हो गए न ही वो कुंतल को गुलाब दे पाया था न ही इज़हार कर पाया था रात भर अपनी नाकामी पे खुद को कोसता तिलमिलाता रहा
कालेज जाने का मन भी नहीं था ...क्या फायदा दो दिन से बस चक्कर लगा कर वापस...हर साल की तरह
पर आज नहीं आज तो कह ही देगा चाहे जो हो वरना सर फट जाएगा उसका एक नई उर्जा ने पुश  किया हो जैसे 
झटके से बिस्तर से खड़ा हुआ और बाथरूम में घुस गया आज फिर शेव बनानी पड़ेगी आईने में देखते हुए मुस्कुराया था मानव
घर से निकलते ही उसने घडी पर नजर डाली 11 बजने वाले हैं कुंतल की क्लास छूटने वाली होगी वह तेजी से पैदल ही चल पढ़ा था कालेज की तरफ
"एक चोकलेट देना" ....गली के नुक्कड़ की दूकान पर पूछा था उसने ..."ये नहीं कोई अच्छी  वाली"
" ये लीजिये ये ९० रुपये की हैं ये १५० की हैं ये २५० की आज के दिन तो यही खरीदते हैं लोग " कुटिल मुस्कान के साथ दुकान वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा

पहली बार पता चला की चाकलेट इतनी महँगी भी आती हैं उसने जेब में देखा १५० रुपये थे ९० रुपये वाली चोकलेट जैकेट के अन्दर की जेब के हवाले कर वो मुस्कुराता हुआ चल दिया कालेज की ओर
कुंतल कालेज के बाहर वापसी के लिए शायद बस के इन्तजार में थी
पूरी शक्ति बटोर उसने आवाज दी .."हाय कुंतल"
"ओ हैलो कैसे हो मानव कालेज में दिखाई नहीं दिए आज"चिहुँक कर बोली थी कुंतल
उसे लगा शायद कुंतल उसे ही ढूंढ रही हो जैसे..
"हाँ बस ऐसे ही".. उसका हाथ अनायास ही जेब मैं पड़े चोकलेट पर चला गया
"चलो न आज पैदल पैदल चलते हैं कुछ बात करनी थी तुमसे" मानव बोला
"हाँ चलो" एक क्षण सोच कर कुंतल उसके साथ चल दी "और सुनाओ क्या चल रहा हैं अब तो एक्जाम्स हैं बस उसके बाद क्या करने का इरादा हैं"
"बस कुछ् खास नहीं अब पढाई बंद कही जॉब देखूंगा" "सुनो तो वो मैं".. मानव जो कहने आया था उसके लिए खुद को तैयार कर रहा था उसकी जेब में पड़ी हुई चोकलेट का रेपर अब फड़फड़ाने लगा था
"कुंतल  फस्ट इयर से जानती हो न तुम मुझे क्या सोचती हो मेरे बारे में कभी याद भी करोगी कालेज के बाद"
कुंतल ने अजीब नज़रों से देखा .."हाँ ..फर्स्ट इयर से.. क्यों क्या इरादा हैं" खिलखिला कर कहा था कुंतल ने

बहुत सुन्दर नहीं थी कुंतल बस दरमियाना सा कद हल्का  गेहुआ रंग .. बिल्लोरी आँखें ..सुतवा नाक.. किताबी सा चेहरा ..गुनगुनाते होंठ और स्वप्निल सी आँखें लापरवाह जुल्फें माथे पर आती हुई सी ..कॉटन के मटमैले रंग के सूट में बहुत खूबसूरत लग रही थी आज
"अरे ऐसे ही कालेज ख़त्म होने को हैं न न जाने फिर कब मुलाकात हो " मानव बोला
"हम्म..अच्छे हो बहुत.. स्मार्ट भी तुम्हें कौन भूलेगा अरे तुम्हारी कवितायेँ सदा तुम्हारी याद दिलाएंगी क्या लिखते हो तुम मानव कालेज की लड़कियां तो फैन हैं तुम्हारी मरती हैं तुम पे " हँसते हुए बोली थी कुंतल.
."और तुम" सोचा पूछ  लें  पर कह नही पाया मानव
मानव की जेब मैं चौकलेट अब कसमसाने लगी थी
"अरे हाँ यार कुछ मेरे  लिए भी लिखो न कभी  कुछ ऐसा  जिसे हमेशा सहेज के रख सकूं" कुंतल ने हस कर कहा
और कहो क्या कहना था तुम्हें ...
"वो मैं.. बस ऐसे ही कुछ नही"..फिर अटक गया था मानव उस पल में और एक लंबी चुप्पी..जिसे कुंतल ने ही तोड़ा
"अरे रुको चोकलेट खाओगे ..विदेशी हैं ..आई लव चोकलेट्स सुबह ही कुनाल ने दी थी" बैग से चोकलेट निकल कर कुंतल ने मानव की तरफ बढ़ा दी
जेब की चोकलेट अब पिघलने लगी थी
"हाँ क्यों नहीं".. कुंतल के हाथ से चोकलेट ले ली थी मानव ने पर ये लेना क्या वैसा ही था जैसा सोचा था उसने
"तुम नहीं लाये होंगे न "
"मैं...नहीं तो" न जाने क्यों झूठ निकल गया मानव के मुह से

"झूठ फिर  झूठ " कुंतल ने  ठिठक के कहा उसकी आंखें हताशा से या फिर गुस्से से ओर भी फैल गयी थी
.."फर्स्ट इयर से जानती हूँ तुम्हें और बहुत अच्छी तरह से सब कुछ हैं तुममे याद रखने लायक पर कमी हैं तो बस.. कल भी दूर दूर से ही ....इतना सीधा होने से जिंदगी नहीं चली मानव निर्णय तो कदम कदम पे लेने होते हैं जिंदगी जिम्मेदारियों से चलती हैं मानव और जिम्मेदारियां सही समय और रफ़्तार मांगती हैं और तुम हमेशा देर कर देते हो... फर्स्ट इयर से इन्तजार में हूँ पर तुम" ...
गला शायद रुंध गया था कुंतल का
"और ये चोकलेट कुनाल ने नहीं दी थी हर बार की तरह मैंने ही खरीदी थी तुम्हारे लिए" भरपूर आंखों से देखते हुए कहा कुंतल ने
"और सुनो इसे अपनी जेब मैं रक्खी चोकलेट्स के साथ बच्चों में बाँट देना"
तेज क़दमों से निकलती हुई  मोड़ से ओटो में बैठते हुए कुंतल ने कहा  
और मानव..मानव उसी मोड़ पे खड़ा रह गया था..
उसके जेब की चौकलेट ..अब पूरी तरह.. पिघल चुकी थी

हरीश भट्ट

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