Thursday, July 6, 2017

माँ भी कभी बूढ़ी होती हैं

उम्र की देहरी पर 
दस्तक देती 
अनमनी साँझ की 
आंखमिचोली 
अधपके घुंघराले बाल 
बिंदी टीकोली 
क्या खूब 
फब्ती हैं तुम पर !   

आँखों मैं सजाये  
कुछ मखमली ख्वाब 
अस्मिता का बंधन 
हर्ष जनित अश्रु 
मुस्कान हसीं क्रंदन
मेरे ही इन्तजार में न !

देख लेना 
लौटा रहा हूँ खुद को  
पहुच ही जाऊंगा 
तुम्हारे हाथों की
लकीरों के
मिटने से पहले

एक बात कहूं   
चिरयौवना ही तो हो तुम 
सदैव ही 
हो भी क्यों न  
मां भी कभी 
बूढी होती हैं भला !! 
,,...हरीश भट्ट ,,,..

No comments:

Post a Comment