Thursday, July 6, 2017

पत्र बहन को

जन्मे अजन्मे के मध्य रह गयी उस बहन को
प्रिय ...क्या नाम लिखूं
नाम तो रखने का समय ही नहीं दिया था तूने जन्म भी लिया तो अजन्मा सा ही हाथ भर की हुई थी माँ  हमेशा कहती थी हथेली पसार के तब उसकी कंपकपाती  हथेलियों की पीढ़ा शायद ९ मॉस की उस पीढ़ी से भी जियादा थी जो उसकी सूनी आँखों में ताउम्र रही
तू नहीं होती तो अच्छा था पर तेरे इस होने न होने ने जीवन भर का दर्द दे दिया सबको
निष्ठुर थी तू आख भर भी न खोली ...न माँ बाबूजी को प्रणाम न बड़े भाई को स्नेह कुछ  भी तो नहीं ..रोक न सके हम तुझे न.... विदा होती हैं बहन ये सुना था पर ऐसे भी ...इतनी जल्दी भी क्या थी 
एक तू थी की मुझे भाई कहने को भी न रही और मुझे देख सूनी कलाई का अभिशाप लिए आज भी याद करता हूँ तुझे की तू होती तो कैसी होती कैसे बात करती
सच कहता हूँ तू होती न तो तेरी चोटी  खीच के रुला देता तुझे फिर करती शिकायत माँ से
सबको सताती न तू   ...हाँ मगर वो तितलियों वाला हेयरर्बेंड सोनपरी वाली हेयरक्लिप  वो तुझे ही तो मिलती तुझे पहले खिलाये बिना भला किसका मन भरता तुझे स्कूल छोड़ने तो मैं ही जाता न ..तेरी कापियों पर जिल्त  भी तो ..और फिर एक दिन दुल्हन भी बनती न तू ....
पर तूने  मौका ही नहीं दिया न माँ कहती थी सुर्ख रुई सी लाल लाल  उंगलियाँ और सुनहरे से बाल यकीन ही नहीं होता था की ये बोलेगी नहीं कभी ...मैं कब देख पाया था बड़ा होते हुए भी कितना छोटा था मैं
हा मगर बाबूजी ने कभी नहीं बताया की उस फूल सी नाजुक परी को जन्मते ही एक घंटे के अन्दर भू समाधी देने की पीड़ा कैसे जब्त की होगी उन्होंने कभी नहीं बताया
 और उस दिन जब मेरी बेटी हुई तब क्या कहा था माँ ने ऐसी ही तो थी तू भी हाथ भर की सुर्ख रुई सी सुनहरे बाल भी ....पता नहीं बेटी समझ गले लगाया था मैंने उसे या बहन समझ
छोटी ...मैं रिश्तों के होने न होने में रह गया और तू जन्मे अजन्मे में
अच्छा चल अब ख़त्म करता हूँ यहाँ सब ठीक हैं बांकी फिर कभी

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