Tuesday, July 4, 2017

बड़े जुनून से


एक कोशिश मेरी भी बेबहर सुधीजनों की नजर 

बड़े जूनून से,, दीवार-ओ-दर से निकला था !
वो कतरा-ए-खूँ जो, मेरी नजर से निकला था !!

मेरी तलाश में हर शख्श, घर से निकला था !
कि इक शहर था वो पूरा, शहर से निकला था !!

ये क्या अजाब हैं, वहशत सफ़र की हैं शायद !
खबर नहीं हैं की सूरज, किधर से निकला था !!

​ये माना तुझसे मुझे, ...प्यार  बहुत हैं लेकिन !
वो कौन था जो सुबह, तेरे घर से निकला था !!

तमाम रात मेरी ......​हिचकियों में  गुजरी थी !
की वो गुबार मेरी, चश्म-ए-तर से निकला था !!

वो उसके होंठों पे, सहरा की प्यास थी शायद !
वो छोटा बच्चा जो, भूखा सहर से निकला था !!

मेरे ख्याल में तो, इसको   जफ़ा  नहीं कहते !
वो पत्ता टूट के खुद ही ..शजर से निकला था !!

हरीश भट्ट

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