.एक मतला और चंद शेर ...
कोई भी शख्श मेरा, बाज़ दफा नहीं रहता !
वो चला जाता हैं अक्सर, रुका नहीं रहता !!
मुझको मगरूर जो कहते हैं गलत कहते हैं !
मैं बहुत देर तक, खुद से खफा नहीं रहता !!
उसकी तस्वीर को मैं, रोज़ ही पढ़ा करता हूँ !
यूं उसके चेहरे पे कुछ भी लिखा नहीं रहता !!
इसी जमीन पे ढूढों उसे, इश्क-ओ-शिद्दत से !
उस आसमान में अब कोई, खुदा नहीं रहता !!
कोई भी शख्श मेरा, बाज़ दफा नहीं रहता !
वो चला जाता हैं अक्सर, रुका नहीं रहता !!
मुझको मगरूर जो कहते हैं गलत कहते हैं !
मैं बहुत देर तक, खुद से खफा नहीं रहता !!
उसकी तस्वीर को मैं, रोज़ ही पढ़ा करता हूँ !
यूं उसके चेहरे पे कुछ भी लिखा नहीं रहता !!
इसी जमीन पे ढूढों उसे, इश्क-ओ-शिद्दत से !
उस आसमान में अब कोई, खुदा नहीं रहता !!
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