Thursday, July 6, 2017

जरा सा बर्फ की मानिंद

किसी की गर्म निगाहों में ढल के देखते हैं !
जरा सा बर्फ की मानिंद पिघल के देखते हैं !!

बहुत किये हैं उजालों ने, जिंदगी में सितम !
कुछ एक पल को, अंधेरों में चल के देखते हैं !!

वो जब भी गुजरते हैं, ठहर जाते हैं हर्फों पर !
अभी कुछ जलवे, वो मेरी गजल के देखते हैं !!

बहुत हुआ नहीं बदला, इस शहर का मिजाज !
हम अपनी आँखों के चश्में, बदल के देखते हैं !!
 
सुना हैं चेहरे पे उनके, खिला हैं पहला गुलाब !
चलो हम भी जरा, घर से निकल के देखते हैं !!
 
तुम्हारे चेहरे का ये मौसम, बदलना चाहता हूँ !
सुबह की धूप में कुछ देर,, टहल के देखते हैं !
 
बहुत चला हूँ मैं तन्हां ही, जिंदगी का सफ़र ! 
गर एतराज न हो तो,साथ चल के देखते हैं !!
 
मेरी वफ़ा को ठुकरा दिया था,  जिसने कभी !!
उन्हीं के सीनों पे अब,, मूंग दल के देखते हैं !
 
सर-ए-बाजार कहीं का,, नही रक्खा मुझको !
इन  हसरतों को फिर से,, कुचल के देखते हैं !!
 
चलो की शम्म की मानिंद, जल के देखते हैं !
की रौशनी के लिए खुद,, पिघल के देखते हैं !!

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