चिर प्रतीक्षित यामिनी थी !
रात्रि का अंतिम प्रहर था !!
शून्यता चहुँ ओर, थी और !
नींद में बेसुध ....नगर था !!
कामिनी इक ..जागती थी !
शून्य में .....नजरें गड़ाये !!
कुछ प्रतीक्षा रत ..हो जैसे !
कुहनियों पर, सर टिकाये !!
स्वप्न के आसार ले कर नींद ...आँखों में पली थी !
वेदना अभी पूर्ण ही थी ...रात आधी हो चली थी !!
सनसनन चलता पवन था !
रागिनी सी ...बह रही थी !!
सरसराती ......तरु लताएँ !
हाँ निशा कुछ कह रही थी !!
एक जोड़ा .....पक्षियों का !!
कामातुर हो ...सुन रहा था !
मुक्त हो ....भय भंगिमा से !
स्वप्न अपने ....बुन रहा था !!
तैरते कुछ प्रश्न थे ..जब बूँद आँखों से ढली थी !
वेदना अभी पूर्ण ही थी ...रात आधी हो चली थी !!
पूर्ण यौवन ....चन्द्रमा का !
चांदनी आसक्त जिस पर !!
जगमगाते ....ज्यों सितारे !
खिलखिलाने को थे तत्पर !!
रात्रि का माधुर्य ....अविरल !
सहन में .....पसरा हुआ था !!
भोर बस ....कुछ दूर ही थी !
क्षितिज अब गहरा हुआ था !!
मन में तो संकोच था पर दीपिका सी जली थी !
वेदना अभी पूर्ण ही थी ...रात आधी हो चली थी !!
क्या कहूं क्या चित्र था वह !
अश्रुओं से ....युक्त था वह !!
ह्रदय से विचलित हुआ सा !
अनमना सा ..मित्र था वह !!
अब नहीं ...आयेंगे प्रियतम !
हा! ये क्या कातिल घड़ी हैं !!
पर मिलन की आस लेकर !
वो वहीँ ...........
............अब भी खड़ी हैं !!
प्रीत की संदिग्धता में ,....प्रेयसी कुछ यूं छली थी!
वेदना अभी पूर्ण ही थी ...रात आधी हो चली थी !!
हरीश भट्ट
No comments:
Post a Comment