Tuesday, October 8, 2019

वेदना के स्वर - गीत

वेदना के स्वर  जब अपने ही देश को धिक्कारते हैं लोग

आभावों मैं जीने वालों ....क्यों इतना पछताते हों ।
क्यों ओरों की चकाचौध में, अपनी रात छुपाते हो ।।
आभावों मैं कौन नही हैं,, कौन यहाँ परिपूर्ण कहों ।
मानव हो ओर मानवता का, ह्रास हुआ बतलाते हों ।।

जिस धरती पर जन्म लिया, जिस माटी में तुम खेले ।
जिस भूमि पर लगते हैं, हर बरस चिताओं पर मेले ।।
उस मिट्टी को गाली दो ये हरगिज भी स्वीकार्य नही ।
सम्मान नही दे पाये तो अपमान काभी अधिकार नही ।

कुछ तो सीमा पर हरदम ही, बस आग लगाये बैठे हैं ।
कुछ अपने हैं अंदरखाने, जाने किस बात पे रूठे हैं ।।
जिसको देखो बात बात पर, हमको आँख दिखता हैं ।
और विदेशी मंचों पर वो,, व्यर्थ ही गाल बजाता हैं ।।

पर कितने भी प्रतिबंध लगालो, टीका चंदन रोली पर ।
जितने चाहे बम फोड़ो तुम,, ईद दीवाली होली पर ।।
फर्क नही पड़ता हैं लेकिन, चाहे जान लड़ा लो तुम ।
गद्दारों का नाम लिखा हैं हर देशभक्त की गोली पर ।।

इस देश को जिंदा रखने को जो, रक्त के आंसू रोया हैं ।
इस गुलाम के लांछन को,, जिसने मस्तक से धोया हैं ।।
वो तो शहीद हो गया वतन पर, अबकी तुम्हारी बारी हैं ।
तुमने तो सबकुछ पाया हैं उसने सब कुछ ही खोया हैं ।।

माना की देश के माथे पर,, अभी चंद लकीरे हैं गहरी ।
माना कि भ्रष्ट हैं तंत्र और, सरकार भी हैं गूंगी बहरी ।।
पुरुषार्थ मगर मंगल हेतु, सब को करना पड़ जायेगा ।
देश का मंगल करने को,, कोई मंगल से नही आयेगा ।।

जय भारत जय भारती..
हरीश भट्ट

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