Tuesday, October 8, 2019

चंद अशआर - वो जख्म दिल के, दिखा रहा था !

शुभ संध्या दोस्तों ...चंद अशआर

वो जख्म दिल के, दिखा रहा था !
ग़ज़ल कोई ....गुन गुना रहा था !!

छुपाता कैसे ....मैं अश्क अपने !
वो सामने से .....ही आ रहा था !!

तू अब भी मुझमें, कहीं हैं बांकी !
न जाने क्या, सिलसिला रहा था !!

जला रहा था वो, शम्म-ए-उल्फत !
मैं शाम अपनी..... बुझा रहा था !!

थी इक ख़लिश सी, लबों पे मेरी !
वो पलकें अपनी ..झुका रहा था !!

चलो की तुम ......बेवफा नहीं थे !
मेरा ही कुछ ....मसलहा रहा था !!

जहाँ पे हद तुमने ....खींच दी थी !
मैं भी वहीँ पर ......रुका रहा था !!

...हरीश भट्ट ....

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