Tuesday, October 8, 2019

सहानुभूति ? कथा

सहानुभूति ?

"नहीं दीपिका इस जिन्दगी से अब कुछ नहीं चाहिए मुझे" सतीश ने झुझलाकर दीपिका को कहा ...."कुछ नहीं हो सकेगा मेरा ...न किसी मुकाम पे ले जा पाउँगा खुद को"
"नहीं सतीश.... तुम मेरे दोस्त हो न ...मेरी तरफ देखों.... मैं तुम्हे इस तरह टूटते नहीं देख सकती तुम में क़ाबलियत हैं ,कोशिश की जरूरत हैं यूं हार मत मानो अभी से"" भर्राए गले से कहा दीपिका ने
"'दीपिका'..मैं कभी कामयाब हो ही नहीं पाऊँगा  ..क्या क्या सपने देखे थे मैंने बचपन से ही ..एक बड़ा सा स्टेज ...सामने लोगो का हजूम ..ओटोग्राफ लेने के लिए भागते लोग ...चकाचौध से भरपूर दुनियां.... लेकिन.. सब ख़त्म ,,सब ख़त्म ...मैं गा ही नहीं पा रहा हूँ दो दिन से"" .......सतीश के मुह से शब्द निकल नहीं रहे हो जैसे  ..हताशा का आवेग उसकी आँखों में था
दीपिका की आखे नम हो आई .......
दीपिका और सतीश एक प्रोग्राम के सिलसिले मैं आगरा मैं मिले थे ताज महोत्सव मैं दीपिका अपने शहर देहरादून से अपने राज्य की नुमायन्दगी पर थी और सतीश  ... बचपन से ही सिंगर बनने का ख्वाब दिल में लिए आया था महोत्सव की जादूगरी को देखने, वहीं  सतीश ने दीपिका के गाने की तारीफ की और अपने मन की ख्वाहिश बयां की ,,दीपिका ने भी उसका हौसला बढ़ाते हुए उसकी मदद करने का वायदा किया था छोटी सी मुलाकात कब परवान चढ़ी ...पता नही चला
और आज चार महीने बाद ये सहानुभूति दोस्ती में बदल चुकी थी ...एक अच्छी आवाज होते हुए भी सतीश में  आत्मविश्वास की कमी थी वह जल्दी टूट जाता था तनाव और अवसाद ..पत्नी का बेमेल रवैया उसे उसका गाना जरा पसंद नही था ..और फिर परिवार की अन्य  समस्याएं भी तो मुंह  बाए खड़ी थी . दीपिका ने अपनी पहुंच से कुछ अच्छे  प्रोग्राम में सतीश को भी चांस दिलवा दिया था पर आगे तो उसे ही बढ़ना था अपनी मेहनत से दीपिका ने सतीश को हमेशा ही उत्साहित किया उसके अंदर के कलाकार को उभारने उसे अवसाद झिझक से बाहर लाने की हर सिम्त कोशिश
.."दीपिका आज कल तुम रहती कहाँ हो भाई.? तुम्हारे प्रोग्राम तो आजकल चल नहीं रहे हैं कहीं... फिर भी तुम इतनी व्यस्त हो की बच्चों की अभिवाहक मीटिंग में जाने का भी टाइम नहीं मिला" ...राजेश ने देर से घर पहुंची दीपिका से कुछ तल्खी से पूछा था ..."'वो मैं अपनी एक रेकॉर्डिंग के सिलसिले मैं निर्देशक साहब के साथ थी"" '...झूठ बोल गयी थी दीपिका अपने पति से...........
कैसे कहती की वो सतीश को सांत्वना देने उसके साथ थी.. जरूरत थी सतीश को उसकी
""देखो दीपिका तुम्हारा रचनात्मक जीवन तुम्हारे साथ हैं लेकिन मैं यह कभी नहीं चाहूँगा की तुम अपने शौक के लिए परिवार की जिम्मेदारियों को तिलांजलि दे दो."". राजेश टिपिकल पति की तरह पेश आया था ""और तुम्हारे ये प्रोग्राम रिहर्सल्स क्या रेस्टोरेंट मैं होने लगे हैं आजकल.... कल अपने त्रिपाठी जी बता रहे थे  की तुम मिडवे रेस्तरां मैं बैठी थी किसी के साथ .....""
बहुत घटिया सा मुह  बना कर कहा था राजेश ने  ""यदि तुम इन्हे आपस मैं व्यवस्थित नहीं कर पा रही हो तो घर मैं बेठों यूं भी बाहर लोगो से मिलना जुलना मुझे पसंद नहीं रोज़ रोज़ ये नही चलेगा अब वरना अपने रास्ते अलग कर लो"" ...राजेश ने उसे तकरीबन धमकाते हुए अपना फैसला  सुना दिया था
एक नश्तर सा उतर गया दीपिका के सीने में .....इसी जद्दोजहद मैं दो बार फ़ोन काटा था उसने सतीश का ...
अजीब कशमकश थी दीपिका के जहन में  सतीश....राजेश.....परिवार.......और उसका करियर सब एक साथ घूम गया था ...आश्चर्य की सतीश का नाम पता नहीं क्यों बार बार आ रहा था इन सबके बीच ...जोर से सर झटक दिया था उसने और चल दी थी रसोई की तरफ
'"कैसी हो दीपिका आज बहुत दिन बाद मिली हो अब तो फ़ोन भी कम उठाती हो तुम मेरा" ...."सुनो मुझे रत्नाकर साहब ने अपने ग्रुप मैं गाने का मौका दिया हैं ..बहुत अछे इन्सान हैं रत्नाकर साहब कई अच्छी फिल्म्स की हैं उन्होंने पता नहीं उन्हें मेरी आवाज कैसे पसंद आ गयी." सतीश ने चहक कर कहा
फीकी सी मुस्कराहट थी दीपिका के चहरे पे ....'"तुम्हारा प्रयास हैं सतीश तुम्हारी मेहनत रंग ला रही हैं कहा था दीपिका ने '"
न बता पाई की रत्नाकर जी को सतीश की सिफारिश के लिए कितने हाथ पैर जोड़े थे  उसने बावजूद के राजेश को ये पसंद नही था बावजूद की तल्खियां बढ़ती जा रही थी उनके बीच  एक दो बार तो राजेश को उसका फोन टटोलते भी देखा था उसने... पर वो खुद को रोक नही पा रही थी सतीश से मिलने को
और एक रोज .."दीपू आज शाम आ रही हो न काफी शॉप पे नए एल्बम की ख़ुशी सेलिब्रेट करनी हैं तुम्हारे साथ ...सिर्फ तुम और मैं और ...और  कुछ कहना भी  हैं तुमसे
."".सुनो सतीश तुम्हारी मुराद अब पूरी होने लगी हैं अब तुम्हे मेरी जरूरत नहीं प्लीज मुझे फ़ोन मत करा करों"" ..सपाट कह गयी थी दीपिका
'''नहीं दीपिका अब तो कहने के दिन आये हैं अगर आज मुझे कुछ हासिल हैं तो तुम्हारी ही कोशिश हैं नहीं तो मैं तो टूट ही चूका था तुम राह न दिखाती तो शायद मैं कभी गा ही न पाता तुम मेरी जरूरत हो दीपिका मेरी प्रेरणा तुम्हे कैसे न शामिल करता अपनी ख़ुशी मैं....'' सतीश उत्तेजित सा था कुछ
""बस सतीश मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूँ तुम्हारा साथ तुम्हारे जज्बात कोई नहीं समझता वहां ...मैं तो आखरी बार कहने आई हूँ की शायद अब मैं मिल न पाऊँ""
झक्क पढ़ गया था  था सतीश का चेहरा कितने अरमान थे उसके दिल मैं ....सोचा था उसने की आज तो अपने दिल की बात कह ही देगा वह दीपिका से .....
....''ये क्या कह रही हो दीप मैं...मैं....तो ........नहीं दीपिका मैं मर जाऊंगा .........मैं तो.....तुम्हे........अपना सर्वस्व मानता  हूँ......
"".मैं शादीशुदा हूँ सतीश तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया......... बिखर गई थी  दीपिका .....तुम....तुमने मेरी सहानुभूति को कुछ और समझा ....प्लीज जीने  दो मुझे भी सतीश उकता गई हूँ में रेज़ा रेज़ा टूट  रही हूँ .. गलती हो गई मुझसे ..कोई हक नहीं एक शादीशुदा, एक पत्नी को किसी गैर से दोस्ती का रिश्ता रखने का भी ...अब मैं कभी नहीं मिल पाउंगी "" 
अवाक था सतीश
""तो तुमने ...क्या जरूरत थी ..तुम्हे.....मेरी जिंदगी मैं आने की....क्यों झूठी सहानुभूति .....वो बाते.....हे ईश्वर."".....सतीश फट पड़ा था ............व्यर्थ के तर्क कुतर्क........बेमतलब वाद विवाद ........अंतहीन कहासुनी..........और फिर कसक। के साथ गीली होती कोर ..खोमोशी का उबाल ...
एक साल गुजर चुका हैं  ...राजेश अब दीपिका के साथ नहीं रहता हैं कहीं हल्द्वानी ट्रान्सफर करवा लिया हैं उसने अलग रास्ता जो चुनना था उसे रोज रोज त्रिपाठी जी की जासूसी बरगला गई थी उसे
और सतीश ...तीन तीन हिट एलबम देने के बाद एक नई फिल्म कर रहा हैं वह ..
दीपिका स्कूल से बच्चों को घर लाते हुए ...सोच रही हैं कैसे कैसे मरहले आते हैं जीवन में......राजेश हो या सतीश रिश्तों की गर्माहट खत्म हो गई हैं सर्द हवा के साथ ...गाना छोड़ दिया हैं अब उसने
लेकिन अतीत की दस्तक.... कि क्या गलत किया था उसने घर में बैठ के सोचती हैं जब. तो जवाब नहीं मिलता कुछ !!
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हरीश भट्ट

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