Tuesday, October 8, 2019

एक नज़्म आज की 'बारिश' की नज़र ...

शुभ संध्या दोस्तों
एक नज़्म आज की 'बारिश'  की नज़र ...

जरा सी क्या हुई... बारिश
निकल आये हो आँगन में !
ये इतनी भी ..ख़ुमारी क्या,
लगी जो आग सी तन में !! 

ज़रा खुल कर ...बरसने दो
जमीं ये तर  ...तो हो जाये !
अभी झिलमिल हैं सुब्ह सी,
जरा दिन भर तो हो जाये !!

ये बूँदें ...हैं तो ..कमसिन....
आसमां से इश्क़ करती हैं !
बहुत इतरा के ...गिरती हैं,
फिजां में ..रक्स करती हैं !!

कभी छन छन छनकती हैं,
मेरी महबूब की पायल सी !
कभी खन खन खनकती हैं,
महकती जैसे,,, संदल सी !!

जबीं पर जब ये गिरती हैं..
भरी ...पूरी .....रवानी से !
के बचपन....मिल रहा हो..
जैसे अल्हड़ सी जवानी से !!

छिटक कर ..कसमसा कर
बादलों से यूं ..निकलती हैं !
तड़प कर जिस्म से ..जैसे
मेरी ये जां ...निकलती हैं !!

मैं कितनी बार ...भीगा हूँ
इन्ही रिमझिम ..फुंहारों में !
कभी बचपन की गलियों में
जवानी की ....कतारों में !!

कभी तुम भीगना ...चाहो
तो कहदो बे-खतर हो कर !
मुहब्बत से तुम्हें ....जानां
भिगो दें तर-ब-तर होकर !!

सुनो नन्ही सी .....बूंदों से
न इतना भी तो ..घबराओ !
कभी आंगन में ..आओ तो,,
कभी छत पर निकल जाओ !!

मेरी मानो ....जरा ...देखो
कभी पानी में ..ढल कर के !
क्या देखा हैं ..कभी बारिश
में नंगे पांव ..चल कर के !!

ये बारिश गर....नहीं होती
तो जीवन सूखा रह जाता ! 
कमी तन की तो भर जाती
मगर मन भूखा रह जाता !!   

सुनो ये... प्रेम की ..निर्झर,
फुहारें.....तुमको समझाएं !
किसी में तुम ..समा जाओं, 
कोई ..तुममें....समा जाए !!

किसी में तुम ....
कोई तुम में ....

...हरीश भट्ट....

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