Tuesday, October 8, 2019

दुमदार दोहे ....

शुभ दुपहरिया दोस्तों
दुमदार दोहे ....

शाम सुहानी हैं मगर, विचलित हैं आकाश!!
नदियों में कलरव नहीं, मन में नहीं उजास!!
निपट एकांत का मारा ! 

वृक्ष नही वन में कहीं, जल विहीन हैं ताल!
सूनी सूनी गोद हैं, .........धरती हैं बेहाल!!
घटायें कब बरसेंगी !

तुझको क्या मैं नाम दूं ,राम कहूं रहमान !
घट घट तेरा वास हैं, ..पग पग तेरी शान!!
दरश को तरसे हैं मन ! 

हरि बिन पार न पावही, लाख करे तू टाल!
कर्म बिना पर गति नहीं, यह कैसा जंजाल  !!
वही अब पार लगाये !

कबहु प्रीत ना कीजिये, कठिन प्रीत की रीत !
ठेस लगे से गिर पड़े, ..ज्यों माटी की भीत !!
प्रीत की रीत बुरी हैं !    

देख सखी सुन ले जरा,.....बात जरा गंभीर !
प्रेम रोग सबसे बड़ा,  विकट बड़ी यह पीर !!
सखी री पछताओगी !

हो विमर्श हर बात पर, आपा काहे खोय !
मत का चाहे भेद हो, मन का भेद न होय!!
न तलवारे तुम खीचों !

मेरा दुख सब से बड़ा, सोचे ये दिन रात !
क्यों तू खुद को दोष दे, घर घर की हैं बात!!
यही हैं दुनियादारी !

बेटी ब्याह न दीजिये, .......देकर दान दहेज़!
जीवन भर सुख ना मिले, ज्यों काँटों की सेज़ !!
जेल जाओगे सुन लो !

हरीश भट्ट....

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