Tuesday, October 8, 2019

संस्मरण/विषय- शिक्षक दिवस


विधा -संस्मरण/विषय- शिक्षक दिवस
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सभी सदस्यों को शिक्षक दिवस की शुभकामनायें
एक प्रसंग याद आता हैं मुझे भी मैं उस समय १०वी कक्षा का छात्र था विज्ञान के विषय में जरा कमजोर भी ऊपर से बोर्ड की परीक्षा की तलवार भी थी लटकी हुई
केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने उस वर्ष ये निर्णय लिया की छात्रों की त्रैमासिक परीक्षा इस बार इस तरह से हो की बोर्ड की परीक्षा का पैटर्न पता चल सके तथा कमजोर छात्रों को प्रेरित किया जा सके..
एक तो सभी छात्र बोर्ड, प्रीबोर्ड के नाम से पहले ही इतना खौफजदा थे उस पर त्रैमासिक परीक्षा का अजब अंदाज लिहाजा विज्ञान विषय में मेरी क्लास के तकरीबन सभी छात्र छात्राएं अनुतीर्ण रह गए ... 
वर्मा सर जो केमेस्ट्री पढाया करते थे एक तो वो पहले ही इतने स्ट्रिक्ट थे  रिजल्ट वाले दिन आते ही उन्होंने पहले तो पूरी क्लास की क्लास ली .. उसके बाद रही सही कसर अगले दिन सुबह असेम्बली में प्रिंसिपल सर ने पूरी कर दी जब पूरे स्कूल के सामने त्रैमासिक परीक्षा में पास न हो पाने वाले बच्चों को अलग से लाइन लगा कर खड़ा कर दिया गया 
जब मेरी कक्षा के कुछ बच्चों ने नया पैटर्न और स्ट्रिक्ट मार्किंग का हवाला दिया तो बांकी बच्चों को तो क्लास में जाने को कह दिया गया पर मेरी पूरी क्रातिकारी क्लास को सजा के तौर पर दिन भर अगस्त की चिलचिलाती धूप में खड़े रहने का फरमान अनुशाशन समिति की तरफ से सुना दिया गया
अब पूरी क्लास धूप में सुबह ७:३० से १० बज गए गर्मी से बेहाल अब गिरे की तब गिरे कभी वर्मा सर को कोसते कभी प्रिंसिपल सर को तो कभी परीक्षा पैटर्न को ..तभी वर्मा सर आते हुए दिखाई दिए हमें लगा फिर कोई आफत आ गई लगता हैं ...पर ये क्या ...वर्मा सर आये और सबसे आगे आ कर खड़े हो गए ..फिर उन्होंने पूछना शुरू किया क्या हुआ क्यों हुआ ..हमने बताया ..सर इस परीक्षा को ले कर इतना डर था की आये हुए जवाब भी नहीं लिख पाए क्योंकि सवाल घुमा फिर के पूछे गए थे ...
एक घंटा उसी तरह बीता ....वर्मा सर रिटायर्मेंट की एज पर थे पसीने से लथपथ वो भी धूप में खड़े रहे हमारे साथ ....प्रिंसिपल सर का अर्दली इस बीच आ के वर्मा सर से बात करके चला गया ..पर हमें कुछ समझ नहीं आया की माजरा क्या हैं सर यहाँ क्यों हैं ??
जब ११:३० पर प्रिंसिपल सर खुद आये और वर्मा सर को कहा की आप स्टाफ रूम जाइये दूसरी क्लास को भी पढ़ाना हैं ...तब वर्मा सर ने मजबूती और आत्मविश्वास से जो कहा मुझे आज भी अक्षरश याद हैं उन्होंने कहा ...

"सर इन बच्चों की सफलता या असफलता मेरी जिम्मेदारी हैं यदि ये पास नहीं हो पाए तो मैं भी फेल हो गया ...सो जो सजा इन्हें मिल रही हैं मैं भी उसमें बराबर का भागिदार हूँ इसलिए जब तक ये धूप में खड़े हैं मैं भी रहूँगा ...

आज याद करता हूँ तो आँख में आसूं आ जाते हैं ...एक स्ट्रिक्ट और कर्कश शिक्षक जीवन में ऐसे भी शिक्षा दे सकता हैं उस दिन पता चला ....प्रिंसिपल सर ने उसी समय सबकी सजा माफ़ की और सबको द्वीतीय तिमाही मैं मेहनत करने की सलाह दे क्लास में भेजा उन्होंने कहा जिन छात्रों का ऐसा डेडिकेटेड शिक्षक हो वो बोर्ड क्या जीवन  की किसी परीक्षा में फेल नहीं हो सकते  ...
ऊपर से कठोर दिखने वाला नारियल समान अंतर्मन से कितना संवेदनशील हो सकता हैं उस दिन पता चला ..नतीजा बोर्ड परीक्षा में हम सब पास थे 

ऐसे थे हमारे शिक्षक ..आज भी बहुत सी बातें हैं स्कूल के समय की जो हमेशा याद आती हैं

हरीश भट्ट

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