Saturday, April 18, 2020

मोगरे की खुशबू ....

ओपिडी में आज भीड़ कुछ जियादा ही थी 
अपनी बारी के इन्तजार में विजिटर बेंच पर बैठे बैठे मैंने सोचा और टाइम पास के लिए मोबाइल खोल कर मैसेज  देखने लगा 
"क्या में यहाँ बैठ सकती हूँ"  
"जी" मैंने उसे बिना देखे ही जरा सा सरक कर कहा
मोबाइल  से नजर तब भटकी जब भीनी सी मोगरे की ख़ुशबू के झोंके ने ध्यान अपनी तरफ खीचा...  मोटे तल्ले वाली चप्पल करीने से तराशे हुए पैर के नाखूनों पर चम्पई सा नेलपेंट पतली सी पाजेब मेचिंग बिछुओं के साथफिरोजी रंग के सूट पर छींट का दुपट्टा अमलताश की फलियों सी उँगलियों के पोर... और  भरी भरी कंपकपाती हथेलियाँ, हथेलियों में पकड़ा हुआ डा. मीनाक्षी अग्रवाल का परचा... तिरछी  निगाह से बस इतना ही देख पाया था तब..
लगा ....कहीं तो देखा हैं... पर कहाँ.. मन में कई चित्र चित्र से तैर गए  

सीने का दर्द कुछ हल्का होता महसूस हुआ, मेरा नंबर पुकारा जा रहा था इसलिए मैं  उठा और सीधा डाक्टर के केबिन में घुस गया सामान्य चेकअप के बाद पांच दिन की दवा और फिर दिखाने की एहतियात लिए बाहर निकला 
वापसी पर निगाह बेंच की तरफ डाली  पर शायद उसका  भी नंबर आ चुका था 
पूरे हफ्ते फिर ये बेजा ख्याल दबे क़दमों ज़हन में  आता रहा की जाने क्या हुआ होगा उसे 
शनिवार शाम को ही ऑफिस में नेहा  का फोन आ गया याद दिलाने के लिए की आज डाक्टर को दिखाते हुए आ जाना तबियत ठीक थी पर फिर भी कदम क्लिनिक तक पहुच ही गए हर तरफ वही ज़र्द बीमार चेहरे हाथों में परचा लिए पेथोलोजी और एक्सरे पकडे हुए ......नेहा ... बताना ही भूल गया मेरी धर्मपत्नी
खाली बेंच की तरफ नज़र दौड़ते हुए मैंने भी परचा जमा करवा कर खुद को एक सीट के सुपुर्द कर दिया 
अचानक याद आया की हर मरीज आज रिपीट हुआ होगा हर एक को पांच दिन के बाद दिखाना होता होगा तो क्या ....तभी एक पहचानी सी आवाज सुनाई  दी ..."एक्सकिउज  मी क्या यहाँ कोई बैठा हैं" ...जी नहीं... इतना ही कहा था मैंने और तभी  मोंगरे की भीनी खुशबू ने अपना तार्रुफ़ दे दिया था ...उस दिन फिरोजी था और आज सलेटी सा कलर का सूट.... बदरंग सा वार्डरोब रहा होगा शायद उसका 

उसके मोबाइल के वाल पेपर पे गहराती शाम का मंजर शायद उसके चेहरे पे भी उतर आया था ....हाँ इस बार देख पाया था मैं वो चेहरा तीसरे दिन के गुलाब के मानिंद कुम्हलाया सा चेहरा सुतवा नाक कोरे कोरे से होंठ.... ये बड़ी बड़ी सूनी सूनी सी ऑंखें छोटी पर सपाट बिंदी कानों में लापरवाह से झुमके करीने से संवरे बाल कानों के पास कुछ एक पक चुकी सुनहली सी बालियाँ  क्लचर में कसमसा के जकड़े हुए बाल  कुछ छूट गए थे  तो कानों के पास से निकल गालों को सहला से रहे थे ...कहीं तो देखा हैं....सोचा पूछ लूं क्या हुआ हैं पर उसकी ऑंखें फर्श की टाइल को कुरेदती हुई सी स्थिर थी बस  कोई मौका नहीं था सिलसिला होने का... कुछ तो रोक रहा था उसे
इसे आप दूसरी मुलाकात कह सकते हैं 
अचानक खांसी  का धसका उठा और वो बैचैन हो उठी मैंने अपने ऑफिस बैग  से पानी की बोतल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा ....”पी लीजिये”...एक बारगी मना  किया था उसने पर शायद जरूरत थी तो दो घूँट उड़ेल लिए अब कुछ ठीक था शुक्रिया कह के बाटल वापस की थी उसने 
""आपके साथ कोई हैं नहीं"" सांसों को संयत होते देख पूछा था मैंने
इनकार में गर्दन  हिली और फिर एक ख़ामोशी सी छा  गई 
“क्या प्रोब्लम हैं आपको” ...बातों का सिलसिला बढ़ाते हुए पूछा था मैंने ...”अस्थमा ..” अपनी तरफ से कम से कम शब्दों में जवाब देने की कोशिश थी उसकी ...इससे पहले की मैं कुछ और कहता उसका नंबर आ चूका था और कुछ देर बाद मेरा भी 
क्लिनिक से निकलते हुए सोच रहा था की इतने मरीज थे वहां फिर उसके विषय में इतनी जिज्ञासा क्यों ... कहीं तो देखा हैं... पर कहाँ 
अगला हफ्ता भी धीरे से सरक गया पर ज़हन से मोगरे की खुशबू निकल ही नहीं पाई 
शनिवार को जल्दी आफिस  से निकल गया था कोई काम नहीं था न डॉक्टर का अपोइन्टमेंट 
बस एक जिज्ञासा हास्पिटल का पूरा  कारीडोर भरा था खाचा खच पर वो नहीं थी वहां मोगरे की महक भी नहीं सिर्फ दवाइयों की गंध थी हर जगह 
शायद अब डॉक्टर की जरूरत न हो चलो अच्छा ही हुआ सोचता हुआ में बाहर निकल ही रहा था की किशोर ...हाँ किशोर ही तो था ...”अरे किशोर पहचाना में अमित” ...अचकचा कर देखा था उसने पहचानने की जद्दोजहद में 
“अरे अमित कैसे हो यार इतने दिन बाद कहाँ हो आजकल” .....किशोर और में स्कूल में एक साथ थे कभी इंटर साथ  किया था हमने ...”हाँ में ठीक हूँ ,मैं तो हरिद्वार ही हूँ तबसे तुम बेंगलोर  थे न” 
 हाँ... किशोर ने कहा अभी पिछली कंपनी में रिजाइन किया हैं तो कुछ दिन के वेकेशन पर हूँ अगले महीने दुबई जा रहा हूँ एक नया जॉब देखा हैं और सुनाओ तुम यहाँ हॉस्पिटल में कैसे 
“बस यार ऐसे ही डाक्टर से मिलने आया था बीपी ठीक नहीं रहता तो कंसल्टेशन के लिए आ जाता हूँ तू बता तू यहाँ कैसे सब ठीक तो हैं” 
“बस ऐसे ही यार सब ठीक हैं अच्छा मिलता हूँ” ..किशोर जल्दबाजी में था 
“हाँ ओके घर आना मैं अब भी वही रहता हूँ याद हैं स्कूल के दिनों में कितना आते थे  तुम लोग” 
“अब तो सब बिखर गए ...ओके ये मेरा मोबाइल नंबर हैं मुझे मिस्काल मार देना में सेव कर लूँगा” ...“ओके बाय”
“अमित” ....पीछे से आवाज लगाईं थी किश्जोर ने “अरे तुझे मिनल याद हैं” ....”कौन मिनल” ....
“वो फिरोजी स्कार्फ वाली 10थ बी तेरा झगडा हुआ था जिससे  .....
“हाँ हाँ वो साइंस ले ली थी न जिसने...क्यों क्या हुआ” 
“उसी को देखने आया हूँ चार  दिन से एडमिट हैं यहाँ” 
“अरे क्या हुआ उसे” अचकचा कर पूछा था मैंने ...”लंग केंसर वो भी आखरी स्टेज पे हैं”  
“ओहो ..अरे कैसे” ....आँखें फ़ैल सी गई थी मेरी और आवाज कपकपाने  लगी थी ....”अच्छी लड़की थी यार ...पर वो यहीं रहती थी  क्या ...”
“नहीं उसकी  शादी तो  पालमपुर हुई थी पर उसके हज्बेंड  ने डिवोर्स दे दिया था तब से यही हैं कई साल से”...बताया किशोर ने 
“अच्छा  कमाल  हैं कभी मुलाकात नहीं हुई चल ठीक हैं तू  मिल मैं निकलता हूँ” ...सीने में कुछ भारीपन सा महसूस होने लगा था 
“तू नहीं मिलेगा “..किशोर ने कहा ...
“मैं ...मैं अब क्या मिलु उससे मैं तो उसे पहचानता भी नहीं ..और कुछ काम भी हैं” 
“झूठ ...झूठ  मत बोल यार मुझे पता हैं  तुम्हारे बारे में मीनल  ने मुझे बताया था बस मुझे ही बता पायी वो आज तक “..किशोर की आवाज में तेजी थी 
“क्या बताया ...ऐसा कुछ नहीं हैं..मैं तो मिला भी नहीं उससे...” सीने का भारीपन बढ़ने लगा था अब  
“बकवास मत कर यार ...तू बुजदिल हैं तेरी वजह से ...क्या कहूं कुछ कह भी नहीं सकता ....... वो मर रही हैं अमित एक बार बस आखरी बार तो मिल ले उससे .सकून से जी नहीं पायी कम से कम सकून से मर तो पाएगी ....मुझे तो लगा था तू उसे ही मिलने आया होगा ...”
“बकवास में कर रहा हूँ या तुम ...प्लीज़ ऐसा मत बोल यार ...” पास ही पड़ी  बेंच पर खुद को रख लिया था मैंने 
“झूठ तो उसने बोला मुझे... की अस्थमा हैं उसे वो अन्दर ही अन्दर घुट रही थी और मैं बुजदिल नहीं था ..कभी नहीं ....पूछ उससे ...एक वादे की जंजीर से जकड़ा  हुआ हैं उसने” "की जब भी मिलेंगे तो अजनबियों की तरह " “वरना क्या बेगानों  की तरह यहाँ हॉस्पिटल आता उसे बस एक नजर भर देखने के लिए ...” बड़ी मुश्किल से कह पाया था मैं
“था तू बुजदिल ...आई थी न वो तेरे पास जब उसकी शादी तय हुई थी कहा था न उसने एक अलग दुनिया बसाने  के लिए” ..किशोर की बातों में गुस्सा दिखने लगा था .
“हाँ कहा था पर.... कैसे ...अपने और उसके परिवारों की खुशियों को रोंद कर न ...और ...छोड़ यार चलता हूँ ...नहीं मिलना हैं मुझे” 
“प्लीज अमित तू नहीं मिलता आज यहाँ तो कोई बात न थी पर अब जब तू यहाँ आ ही गया हैं तो एक बार मिल ले मेरी खातिर” 
“ठीक हैं चल” ..और मैं  उठ कर किशोर के पीछे पीछे हो गया ..आगे जाने की लालसा तो थी पर हिम्मत नहीं थी मन एक अजीब सी आशंका में घिर गया था
रूम नंबर १४ अन्दर घुसते ही मोगरे की खुशबू सांसों में भर गयी थी वो सो रही थी शायद करवट लिए हुए पास ही उसकी बेटी हाँ बेटी ही रही होगी नक्श तो यही कहते थे ...”नमस्ते”  कह के उसने धीरे से आवाज दी "मम्मी  " 
“रहने दो मत जगाओ सोई होगी” किशोर ने कहा 
“नहीं ...जग रही हैं ..मम्मी   देखो किशोर अंकल आये हैं...मम्मा...मम्मा” 
आँखें शायद बंद थी ...नहीं खुली न  जागने वाली नींद में खोयी हुई मीनल ने अपना वादा निभा दिया था जानते हुए भी अनजान बने रहने का मिल के भी कभी न  मिलने का किशोर पागलों की तरह उसे झकझोर रहा था 
मैं रूम से बाहर निकल आया था बैचैन सा सीना लिए... कुछ वादे क्या कोई ऐसे भी निभा पायेगा ....और इस हद तक 

हरीश  भट्ट 

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