Saturday, April 18, 2020

मुस्कुराहट

शुभ प्रभात 
""मुस्कुराहट""

 सुनो 

ये जो तप्त 
लहरावदार 
सुर्ख 
पनियाली 
नारंगी की फांकों सी
रक्तिम 
मेहराबें हैं न 
तुम्हारे चेहरे पे 
कान के 
इस सिरे से 
उस सिरे तक 
खींची हुई 

जैसे किसी ने 
तराश दी हो 
कोई गजल 
या की बिछा दी हो
एक हिलोरदार लहर 
चाशनी में 
पगी हुई
गुदाज़ गालों के बीच 
अनियंत्रित सी 

जैसे शाम के धुंधलके में 
सुरमई 
चांदनी रात में 
किसी कश्ती का
कोई घुमावदार 
अक्स 
पड रहा हो 
दरियाह में 
जैसे कोई चातक
जन्म जन्मांतर की
प्यास लिए हो 
स्वाति नक्षत्र की 
बूंदों के लिए 

अपने होंठों की 
तपिश को 
सुलगाये रखना 
उदासी के अंधेरों 
में खिलखिलाने 
का सबब हैं ये 
इन की गर्माहट 
शुष्क ठंडी रातों का 
सामां होगी 

जब कभी 
उदासियों का मरुस्थल 
घेर लेता हैं मुझे 
तब 
महसूस होती हैं
इन पंखुड़ियों की 
तपिश 
और इनकी 
मृदुल नमी 
तब 
निर्जर बंजर भूमि 
मन की 
लहलहा उठती हैं

सुनो 
हो सके 
तो ये सुर्ख गुलाब 
खिलाये रखना 
सदा ही 
इन मेहराबों पर 
सदा के लिए 
☺️☺️
तो आप भी मुस्कुराते रहिये ...😊😊💐💐
हरीश भट्ट 
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