शिफॉन, (साड़ी मात्र परिधान नही हैं अलंकार हैं )
सुनो,
शिफॉन की ये
कत्थई रंग की साड़ी
ऐसे लिपटी हैं तुमसे
जैसे किसी
अवयस्क गुलमोहर से लिपटी
कोई द्रुमलता
की जैसे
डूबते सूरज
की लालिमा को
अपने आगोश में लिए
क्षितज पर
साँझ का धुधलका
पता ही नहीं चलता की
साड़ी में तुम हो
या की तुम में साड़ी
कैसे अंगीकृत कर लेती हो
इतनी सहजता और
सलीके से एकवस्त्र को
आश्चर्य की
नो गज का ये घेर
कैसे सिमट जाता हैं
अप्रतिम काया में
इतनी शालीनता से
एकाकार हो
नख से शिख तक
विस्तार को जैसे
मोहित कर
एकत्रित कर लिया हो
बांध दिया हो जैसे
किसी उश्रृंखल नदी को
रोक लिया हो जैसे
किसी अल्हड़ झरने की
फुहार को
थाम लिया हो जैसे
परिमल के पसार को
बंधेज की कारीगिरी हैं
की सम्मोहन तुम्हारा
और उस पर
मैचिंग
शर्माए से कर्णफूल
इतराई सी चूड़ियाँ
खनखनाई सी पायल
चाहचहाया सा मुक्ता हार
गर्वित सा तिलक
कजराई सी आँखें
ललायमान मस्तक
दिग्भ्रमित करती मुस्कान
दोनों कर्ण फलकों तक
हैरान हूँ
की साड़ी
किसी भी रंग की हो
ये सब से
कैसे मैच हो जाते हैं
सुना हैं
काँधे से छिटका हुआ
तुम्हारा ये आँचल
हवाओं का
रुख तय करता हैं
बल खाता हुआ सा
सागर की लहरों सा
बिंदास और आवारा
पर उसी जुड़ाव पर
फिर फिर
लौट के आने को आतुर
सुनो
सर पर रक्खा करो
इस बेशर्म को
कोने से दबा कर
बगावत न करदे वरना
सोचता हूँ
की साड़ी और तुम्हारा
चिरयौवन सा साथ हैं
जन्म जन्मान्तर का
चिर बंधन हो जैसे
अनुबंध हो
भव्यता का
और दिव्यता का
मौसमों की तरह
हर रंग बिखर जाता हैं तुमपे
हर भाव
समभाव में होते हुए भी
निखर जाता हैं
जब
सिमट आती हो तुम
शिफॉन की
करीने से लिपटी
मादकता में
सुनो
बताओ तो जरा
आज
कौन सा अलंकार
पहना हैं तुमने ??
(चित्र साभार सीमा हरीश भट्ट की वाल से )
-हरीश भट्ट-
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